पदार्थान्वयभाषाः - (भुजाम्) भोगप्रद पालकों के मध्य में (यविष्ठम्) अतिशय से मिश्रणधर्मी समागम-कर्ता को (शासा मित्रं दुर्धरीतुम्) ज्ञानशिक्षण से मित्र तथा शासन-दण्डप्रदान से दुर्धारणीय को (अग्निम्) परमात्मा या राजा को (ईडे) प्रशंसित करता हूँ-स्तुत करता हूँ (यस्य धर्मन्) जिसके धारण करने योग्य ज्ञान या ज्ञापन में (एनीः स्वः सपर्यन्ति) प्रगतिशील मानवप्रजाएँ सुखप्राप्ति के लक्ष्य से उसे सत्कृत पर प्राप्त होते हैं (मातुः-ऊधः) माता के दुग्धाधान स्तन को जैसे बच्चे प्राप्त होते हैं ॥२॥
भावार्थभाषाः - समस्त पालकों में उपासक के लिए परमात्मा और प्रजा के लिए राजा मित्रसमान और विरोधी के लिए दण्डदाता है। उसकी स्तुति या प्रशंसा करनी चाहिए। उपासक और प्रजा सुख को लक्ष्य करके उसका सत्कार कर प्राप्त करते हैं, जैसे बच्चे माता के स्तन को प्राप्त होते हैं ॥२॥