आ नि॑वर्त॒ नि व॑र्तय॒ पुन॑र्न इन्द्र॒ गा दे॑हि । जी॒वाभि॑र्भुनजामहै ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
ā nivarta ni vartaya punar na indra gā dehi | jīvābhir bhunajāmahai ||
पद पाठ
आ । नि॒ऽव॒र्त॒ । नि । व॒र्त॒य॒ । पुनः॑ । नः॒ । इ॒न्द्र॒ । गाः । दे॒हि॒ । जी॒वाभिः॑ । भु॒न॒जा॒म॒है॒ ॥ १०.१९.६
ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:19» मन्त्र:6
| अष्टक:7» अध्याय:7» वर्ग:1» मन्त्र:6
| मण्डल:10» अनुवाक:2» मन्त्र:6
बार पढ़ा गया
ब्रह्ममुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र-आ निवर्त) हे हमारी ओर अभिमुख होनेवाले ऐश्वर्यशाली परमात्मन् ! (निवर्तय) हमारे अभिमुख हो (नः पुनः-गाः-देहि) हमारे लिए पुनः-पुनः और पुनर्जन्म में भी गौवों, प्रजाओं, इन्द्रियों को दे (जीवाभिः भुनजामहै) हम जीती हुई, स्वस्थ रहती हुई गौवों, प्रजाओं, इन्द्रियों के द्वारा भोग को प्राप्त हों ॥६॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा हमें गौवों, प्रजाओं, इन्द्रियों को प्रदान करे, जिससे हम उनके सम्बन्ध से भोगों को प्राप्त करें ॥६॥
बार पढ़ा गया
ब्रह्ममुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र-आ निवर्त) हे-अस्मदभिमुखीभवितः-ऐश्वर्यवन् परमात्मन् ! (निवर्तय) अस्मदभिमुखी भव (नः पुनः-गाः-देहि) अस्मभ्यं पुनः पुनः-पुनर्जन्मनि वा गाः प्रजाः, इन्द्रियाणि वा देहि (जीवाभिः-भुनजामहै) जीवयन्तीभिर्जीवनं प्रयच्छन्तीभिर्वयं भोगं प्राप्नुयाम ॥६॥