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उत्ति॑ष्ठ॒ताव॑ पश्य॒तेन्द्र॑स्य भा॒गमृ॒त्विय॑म् । यदि॑ श्रा॒तो जु॒होत॑न॒ यद्यश्रा॑तो मम॒त्तन॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ut tiṣṭhatāva paśyatendrasya bhāgam ṛtviyam | yadi śrāto juhotana yady aśrāto mamattana ||

पद पाठ

उत् । ति॒ष्ठ॒त॒ । अव॑ । प॒श्य॒त॒ । इन्द्र॑स्य । भा॒गम् । ऋ॒त्विय॑म् । यदि॑ । श्रा॒तः । जु॒होत॑न । यदि॑ । अश्रा॑तः । म॒म॒त्तन॑ ॥ १०.१७९.१

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:179» मन्त्र:1 | अष्टक:8» अध्याय:8» वर्ग:37» मन्त्र:1 | मण्डल:10» अनुवाक:12» मन्त्र:1


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ब्रह्ममुनि

इस सूक्त में राजा के लिए कररूप में खेती अन्न उद्यान का फल देना चाहिए, पका अन्न, उद्यान का रसीला फल, गौ के स्तन में दूध भी पका हुआ आहार कहलाता है, खेत का कच्चा अन्न भी खाया जाता है।

पदार्थान्वयभाषाः - (उत् तिष्ठत) हे मनुष्यों ! उठो, कार्यतत्पर होवो (इन्द्रस्य) राजा का (ऋत्वियम्) ऋतु में होनेवाले (भागम्) भाग को (अव पश्यत) ध्यान से देखो और निर्धारित करो (यदि श्रातः) यदि वह भाग पक गया हो, खेती में सम्पन्न हो गया हो, तो उसे (जुहोतन) समर्पित करो (यदि-अश्रातः) यदि वह वैसा नहीं पका, तो (ममत्तन) उसके रस से हर्षित करो ॥१॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिए कि वे कर्मपरायण बने रहें, विशेषतः खेती करने और बगीचे लगाने में अधिक ध्यान दें। राजा या भूस्वामी को ऋतु पर पके अन्न का भाग दें, यदि उद्यान है, तो उसके रसीले फल प्रदान करने चाहिये ॥१॥
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ब्रह्ममुनि

अस्मिन् सूक्ते राज्ञे कृषेरन्नानि खलूद्यानस्य रसमयानि फलानि शुल्करूपेण दातव्यानि। कृषौ पक्वमन्नमुद्यानं च रसमयं पक्वं गवि च दुग्धमपि पक्वं भवतीति साधितम्।

पदार्थान्वयभाषाः - (उत्तिष्ठत) हे मानवाः ! कार्यतत्परा भवत (इन्द्रस्य) राज्ञः (ऋत्वियं भागम्) ऋतौ भवं भागम् (अव-पश्यत) निर्धारयत (यदि श्रातः) यदि स भागः श्रातः-पक्वो जातः कृषौ सम्पन्नो जातस्तर्हि तम् (जुहोतन) दत्त समर्पयत (यदि-अश्रातः) यदि न तथा पक्वस्तर्हि (ममत्तन) तस्य रसेन हर्षयत ॥१॥