परी॒मे गाम॑नेषत॒ पर्य॒ग्निम॑हृषत । दे॒वेष्व॑क्रत॒ श्रव॒: क इ॒माँ आ द॑धर्षति ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
parīme gām aneṣata pary agnim ahṛṣata | deveṣv akrata śravaḥ ka imām̐ ā dadharṣati ||
पद पाठ
परि॑ । इ॒मे । गाम् । अ॒ने॒ष॒त॒ । परि॑ । अ॒ग्निम् । अ॒हृ॒ष॒त॒ । दे॒वेषु । अ॒क्र॒त॒ । श्रवः॑ । कः । इ॒मान् । आ । द॒ध॒र्ष॒ति॒ ॥ १०.१५५.५
ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:155» मन्त्र:5
| अष्टक:8» अध्याय:8» वर्ग:13» मन्त्र:5
| मण्डल:10» अनुवाक:12» मन्त्र:5
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ब्रह्ममुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (इमे) ये कृषक-किसान (गाम्) बैलों को (परि-अनेषत) खेतों को जोतने के लिए सब ओर ले जाते हैं (अग्निम्) खेती से अन्न प्राप्त होने पर अग्नि को भोजनपाकार्थ (परि-अहृषत) सब ओर प्रज्वलित करते हैं (देवेषु) विद्वानों के निमित्त तथा देवयज्ञ होम के निमित्त (श्रवः-अक्रत) अन्न को देते हैं और होम में आहुति देते हैं (कः-इमान्) कौन दुष्काल आदि इन प्राणियों को (आ-दधर्षति) पीड़ित करता है अर्थात् कोई नहीं ॥५॥
भावार्थभाषाः - जब वर्षा हो जाती है, तो किसान लोग बैलों से खेत जोतते हैं, खेतों में अन्न उत्पन्न होने पर अग्नि में भोजन बनाकर खाते हैं, विद्वानों के निमित्त अन्न प्रदान करते हैं और यज्ञ में भी होमते हैं, इस प्रकार अकेले अन्न नहीं खाना चाहिये, इस प्रकार करने पर दुर्भिक्ष पीड़ित नहीं करता ॥५॥
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ब्रह्ममुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (इमे) एते कृषकाः (गां परि-अनेषत) गाः-बलीवर्दान् ‘मन्त्रजात्यामेकवचनम्’ कृषिकरणाय परितः सर्वतो नयन्ति “णीञ् प्रापणे” [भ्वादि०] ततो लङ् सिप् अट् च छान्दसौ (अग्निं-परि-अहृषत) कृषितोऽन्नं प्राप्याग्निं भोजनपाकार्थं परितः सर्वतो ज्वालयन्ति (देवेषु श्रवः-अक्रत) तथा देवेषु विद्वन्निमित्तं देवयज्ञे होमे चान्नम् “श्रवोऽन्ननाम” [निघ० २।७] हुतं कुर्वन्ति पुनः (कः-इमान्-आदधर्षति) कः खलु दुष्कालादिः खल्वेतान् प्राणिनः पीडयति न कश्चन ॥५॥