त्वमि॑न्द्र स॒जोष॑सम॒र्कं बि॑भर्षि बा॒ह्वोः । वज्रं॒ शिशा॑न॒ ओज॑सा ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
tvam indra sajoṣasam arkam bibharṣi bāhvoḥ | vajraṁ śiśāna ojasā ||
पद पाठ
त्वम् । इ॒न्द्र॒ । स॒ऽजोष॑सम् । अ॒र्कम् । बि॒भ॒र्षि॒ । बा॒ह्वोः । वज्र॑म् । शिशा॑नः । ओज॑सा ॥ १०.१५३.४
ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:153» मन्त्र:4
| अष्टक:8» अध्याय:8» वर्ग:11» मन्त्र:4
| मण्डल:10» अनुवाक:12» मन्त्र:4
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ब्रह्ममुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे परमात्मन् या राजन् ! (त्वम्) तू (सजोषसम्) रुचि के अनुसार (अर्कम्) प्रसंशनीय (वज्रम्) विरोधी के प्राणों का वर्जक शस्त्र को (शिशानः) तीक्ष्ण करता हुआ (ओजसा) आत्मबल से (बाह्वोः) बाहु के समान पराक्रम और गुणों में या भुजाओं में (बिभर्षि) धारण करता है ॥४॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा प्रीतियुक्त प्रशंसनीय ओजरूप वज्र को तीक्ष्ण करता हुआ अपने पराक्रमगुणों से पापी पर प्रहार करता है, इस प्रकार राजा विरोधी को प्राणों से वियुक्त करने के लिये अपने भुजाओं से शस्त्र को छोड़नेवाला हो ॥४॥
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ब्रह्ममुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे परमात्मन् राजन् ! वा (त्वम्) त्वम् (सजोषसम्-अर्कं वज्रं शिशानः) सह प्रीयमाणं स्तुत्यं विरोधिनः प्राणस्य वर्जकं शस्त्रं तीक्ष्णी-कुर्वन् (ओजसा बाह्वोः-बिभर्षि) आत्मबलेन बाह्वोर्बाहुवन्नाशकपराक्रमगुणयोः-भुजयोर्वा धारयसि ॥४॥