पदार्थान्वयभाषाः - (अग्निः-देवः) अग्रणी परमात्मदेव या प्रकाशमान भौतिक अग्नि (देवानां पुरोहितः-अभवत्) समस्त विद्वानों उपासकों का पूर्व से हितसाधक या वायु आदि देवों का पूर्ववर्ती धारक-प्रेरक अग्नि है (मनुष्याः-ऋषयः) मनुष्य और तत्त्वदर्शी (अग्निं-सम् ईधिरे) परमात्मा को अपने अन्दर प्रकाशित करते हैं या अग्नि को अपने घर में दीप्त करते हैं (अहं धनसातौ) मैं अध्यात्मधन की प्राप्ति में या भौतिक धन की प्राप्ति में (अग्निं हुवे) परमात्मा की प्रार्थना करता हूँ या अग्नि का उपयोग करता हूँ (मृळीकं धनसातये) सुखरूप को धनलाभ के लिए प्रार्थित करता हूँ या उपयोग में लाता हूँ ॥४॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा उपासक विद्वानों का पूर्व से हितसाधक है, मनुष्य तथा तत्त्वदर्शी अपने अन्दर साक्षात् करते हैं, अध्यात्मधन की प्राप्ति के लिए उसकी प्रार्थना करते हैं, एवं अग्नि वायु आदि देवों का पूर्ववर्ती प्रेरक हैं, मनुष्य और तत्त्वदर्शी अपने घर में एवं कार्य में भौतिक धन की प्राप्ति के लिए इसका उपयोग करें ॥४॥