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एक॑पा॒द्भूयो॑ द्वि॒पदो॒ वि च॑क्रमे द्वि॒पात्त्रि॒पाद॑म॒भ्ये॑ति प॒श्चात् । चतु॑ष्पादेति द्वि॒पदा॑मभिस्व॒रे स॒म्पश्य॑न्प॒ङ्क्तीरु॑प॒तिष्ठ॑मानः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ekapād bhūyo dvipado vi cakrame dvipāt tripādam abhy eti paścāt | catuṣpād eti dvipadām abhisvare sampaśyan paṅktīr upatiṣṭhamānaḥ ||

पद पाठ

एक॑ऽपात् । भूयः॑ । द्वि॒ऽपदः॑ । वि । च॒क्र॒मे॒ । द्वि॒ऽपात् । त्रि॒ऽपाद॑म् । अ॒भि । ए॒ति॒ । प॒श्चात् । चतुः॑ऽपात् । ए॒ति॒ । द्वि॒ऽपदा॑म् । अ॒भि॒ऽस्व॒रे । स॒म्ऽपश्य॑न् । प॒ङ्क्तीः । उ॒प॒ऽतिष्ठ॑मानः ॥ १०.११७.८

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:117» मन्त्र:8 | अष्टक:8» अध्याय:6» वर्ग:23» मन्त्र:3 | मण्डल:10» अनुवाक:10» मन्त्र:8


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (एकपात्) एकभाग धनादि साधनवाला मनुष्य उपयोग करता हुआ (द्विपदः) द्विगुण साधनवाले मनुष्य से (भूयः-वि चक्रमे) अधिक विक्रम करता है (द्विपात्) दो भाग साधनवाला उसका उपयोग करता हुआ (त्रिपादम्) तीन भाग साधनवाले जन को-मनुष्य को (पश्चात्) पीछे (अभि एति) धकेल देता है-कर देता है (चतुष्पात्) चार धनादिभाग रखनेवाला (उपतिष्ठमानः) बैठा हुआ-उपयोग न करता हुआ (द्विपदाम्) दो भाग साधनवालों की (पङ्क्तीः) पादरेखाओं पगडण्डियों या पदचिह्नों को (सम्पश्यन्) देखता हुआ (अभिस्वरे) उनके आदेश पर (एति) चलता है ॥८॥
भावार्थभाषाः - धनादि साधन का एक भाग रखनेवाला मनुष्य उसका सदुपयोग करता हुआ द्विगुण साधनवाले से अधिक विक्रम और सफलता प्राप्त करता है, दो भाग साधनवाला उसका उपयोग करता हुआ तीन भाग साधनवाले को पीछे ढकेल देता है। चार भाग साधनवाला केवल बैठा हुआ कुछ न करता हुआ दो भाग साधनवाले उपयोग करते हुए मनुष्यों की पादरेखाओं को देखता हुआ उनके आदेश पर चलता है-चला करता है ॥८॥
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (एकपात्-द्विपदः-भूयः-वि चक्रमे) एकधनादिसाधनवान् पुरुषो द्विगुणसाधनवतो पुरुषात्खल्वधिकं विक्रमं करोति तदुपयोगं कुर्वन् (द्विपात्-त्रिपादं पश्चात्-अभि एति) द्विपात्-द्विसाधनवान् तदुपयोगं कुर्वन् त्रिपादं-त्रिपादवन्तं पश्चात् प्रेरयति (चतुष्पात्-उपतिष्ठमानः) चतुर्गुण-साधनवान्  केवलमुपतिष्ठमानस्तदुपयोगं न कुर्वाणः (द्विपदां-पङ्क्तीः सम्पश्यन्-अभिस्वरे-एति) द्विसाधनभागवतां तदुपयोगं कुर्वतां पङ्क्तीः पादरेखाः पश्यन् तेषामादेशे “स्वृ शब्दे” [भ्वादि०] चलति ॥८॥