पदार्थान्वयभाषाः - (द्विबर्हाः) विद्या और पुरुषार्थ के द्वारा वृद्धि को प्राप्त हुआ (अमिनः) अपरिमित गुण शक्तिवाला (वृषा) सुखवर्षक राजा या आत्मा (परिषिक्तम्-अन्धः) अभिषिक्त आध्यानीय राजपद को या विद्या से अभिषिक्त स्नातक पद को (हरिभ्याम्) दुःखापहरण और सुखाहरण करनेवाले गुणों के द्वारा या अज्ञानापहरण ज्ञानाहरण करनेवाले अध्यापक उपदेशकों के द्वारा शिक्षित हुआ (आयातु) आवे-प्राप्त हो (गवि) पृथिवी पर (आसुतस्य) भलीभाँति उत्पन्न (प्रभृतस्य मध्वः) प्रकृष्टता से रसस्वाद पूर्ण पके फल के समान (खेदाम्) खिन्न पीड़ितों को (अरुषहा) पीड़ानाशक (सत्रा) यथावत् (आ वृषस्व) सत्य तत्त्व को ठीक-ठीक सम्पादन कर ॥४॥
भावार्थभाषाः - राजा विद्या और पुरुषार्थ के द्वारा बढ़ा हुआ तथा गुणशक्ति में अतुल हुआ राजपद पर अभिषिक्त होता है, प्रजा को दुःखहरण और सुखाहरण गुणों से राजपद पर सुशोभित होता है। रसस्वादपूर्ण पके हुए फल की भाँति राजपद का यथार्थ लाभ ले और दुःखी प्रजा के दुःख को दूर करनेवाला बने एवं आत्मा विद्यापुरुषार्थ से बढ़ा हुआ गुण और शक्तिपूर्ण स्नातक पद को प्राप्त करे। अध्यापक उपदेशकों द्वारा अज्ञान को-नष्ट कर ज्ञान को ग्रहण कर स्नातक पद प्राप्त करे, रसस्वादपूर्ण पके फल की भाँति सत्य तत्त्व को प्राप्त करे और दुःखितों के दुःख का नाशक बने ॥४॥