वांछित मन्त्र चुनें

पिबा॒ सोमं॑ मह॒त इ॑न्द्रि॒याय॒ पिबा॑ वृ॒त्राय॒ हन्त॑वे शविष्ठ । पिब॑ रा॒ये शव॑से हू॒यमा॑न॒: पिब॒ मध्व॑स्तृ॒पदि॒न्द्रा वृ॑षस्व ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pibā somam mahata indriyāya pibā vṛtrāya hantave śaviṣṭha | piba rāye śavase hūyamānaḥ piba madhvas tṛpad indrā vṛṣasva ||

पद पाठ

पिब॑ । सोम॑म् । म॒ह॒ते । इ॒न्द्रि॒याय॑ । पिब॑ । वृ॒त्राय॑ । हन्त॑वे । श॒वि॒ष्ठ॒ । पिब॑ । रा॒ये । शव॑से । हू॒यमा॑नः । पिब॑ । मध्वः॑ । तृ॒पत् । इ॒न्द्र॒ । आ । वृ॒ष॒स्व॒ ॥ १०.११६.१

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:116» मन्त्र:1 | अष्टक:8» अध्याय:6» वर्ग:20» मन्त्र:1 | मण्डल:10» अनुवाक:10» मन्त्र:1


बार पढ़ा गया

ब्रह्ममुनि

इस सूक्त में विशेषतः राजधर्म, संग्रामजय के कारण कहे गए हैं, राष्ट्र में अन्न का संग्रह प्रजाहित साधन, चार प्रकार के सोमों का सेवन आदि विषय हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (शविष्ठ इन्द्र) हे बलिष्ठ राजन् ! या आत्मन् ! (महते) महान् (इन्द्रियाय) ऐश्वर्य के लिये (सोमम्) सोम ओषधिरस को राजसूययज्ञ में (पिब) पी या सुसम्पन्न राष्ट्र को ग्रहण कर (वृत्राय) आक्रमणकारी शत्रु को या पाप कामभाव को (हन्तवे) हनन करने के लिये-मारने के लिये (पिब) पी-या ग्रहण कर (हूयमानः) आमन्त्रित किया हुआ (राये) रमणीय (शवसे) बल के लिये (पिब) पी या ग्रहण कर (मध्वः) मधुर रस को (पिब) पी, (तृपत्) तृप्त हुआ (आ वृषस्व) भलीभाँति सुख की वर्षा कर ॥१॥
भावार्थभाषाः - बलवान् राजा राजसूय यज्ञ में सोमरस का पान करके या निष्पन्न राष्ट्र को ग्रहण करके शत्रु को नष्ट करने में समर्थ होता है और प्रजा के लिये सुख की वृष्टि करता है-एवं आत्मा सोम ओषधी रस को पीकर आत्मबल को प्राप्त होकर पाप एवं कामभावना को जीतता है-नष्ट करता है और अपने जीवन में सुख को आपूर भरपूर करता है ॥१॥
बार पढ़ा गया

ब्रह्ममुनि

अत्र सूक्ते विशेषतो राजधर्माः सङ्ग्रामजयकारणानि वर्ण्यन्ते राष्ट्रेऽन्नसङ्ग्रहः, प्रजाहितकार्याणि सेव्यानि चतुर्विधसोमस्य सेवनमित्येवमादयो विषयाः सन्ति।

पदार्थान्वयभाषाः - (शविष्ठ इन्द्र) हे बलिष्ठ इन्द्र ! राजन् ! आत्मन् ! वा (महते-इन्द्रियाय सोमं पिब) महते ऐश्वर्याय सोममोषधिरसं राजसूययज्ञे पिब यद्वा सुनिष्पन्नं राष्ट्रं गृहाण (वृत्राय हन्तवे पिब) आवरकमाक्रमण-कारिणं शत्रुं यद्वा पापं कामभावम् “द्वितीयार्थे चतुर्थी व्यत्ययेन छान्दसी” “पाप्मा वै वृत्रः” [श० ११।१।५।७] हन्तुम् “तुमर्थे से…तवेन्” [अष्टा० ३।४।९] इति तवेन् प्रत्ययः (हूयमानः-राये शवसे पिब) आहूयमानः सन् रमणीयाय “राये रमणीयाय” [निरु० १३।१४।३०।४३] बलाय “शवः-बलनाम” [निघ० २।९] पिब-गृहाण वा (मध्वः-पिब तृपत्-आ वृषस्व) मधुररसं पिब, पीत्वा तृप्तः सन् समन्ताद् सुखं वर्षय ॥१॥