पदार्थान्वयभाषाः - (आत्) अनन्तर (इन्द्रः) राजा (सत्रा) एक साथ (तविषीः) बलवती सेना पर (अपत्यत) ईश्वरत्व-स्वामित्व करता है (द्यावापृथिवी) ज्ञानप्रकाशकगण अथवा श्रमिकगण दोनों गणों को (वरीयः) बहुत भारी उपाय से राष्ट्रहित के लिये (अबाधत) विलोडित करे विशेषरूप से प्रेरित करे (धृषितः) प्रगल्भता को प्राप्त हुआ (आयसं वज्रम्) लोहनिर्मित-लोहचूर्णयुक्त अस्त्र अथवा तेजस्वी शस्त्रास्त्र को (अव अभरत्) अवधारण करता है-सुरक्षित रखता है (मित्राय) मित्ररूप ज्ञानप्रकाशक गण के लिये (वरुणाय) वरण करनेवाले श्रमिकगण के लिये (दाशुषे) राष्ट्रनिमित्त सहयोग देनेवाले के लिये (शेवम्) सुख को सुरक्षित रखता है ॥५॥
भावार्थभाषाः - राजा के पास बलवती सेना होनी चाहिये, इस प्रकार उस पर स्वामित्व करते हुए राजा के दोनों गण ज्ञानप्रकाशकगण और श्रमिकगण राष्ट्रहित के लिये राजा इनको प्रेरणा करता रहे और राजा भी तीक्ष्ण लोहे के बने या लोहचूर्णयुक्त शस्त्रास्त्र सुरक्षित रखे और ज्ञानप्रकाशकगण तथा श्रमिकगण एवं अन्य सहयोग देनेवाले के लिये सुख पहुँचावे ॥५॥