पदार्थान्वयभाषाः - (भारती) सूर्य की दीप्ति (मनुष्वत्-इळा) मनुष्यसम्बन्धी पार्थिव अग्नि देवता (सरस्वती) सरणशील जलवाली विद्युत्-देवता (चेतयन्ती) यज्ञ को प्रेरित करती हुई (तूयम्) शीघ्र (सः) हमारे (यज्ञम्) यज्ञ को (एतु) प्राप्त हो (इह) इस यज्ञप्रसङ्ग में (तिस्रः-देवीः) ये तीनों देवियाँ (स्वपसः) सुकर्मवाली उत्तम कार्यसाधक (इदम्) इस (बर्हिः) महान्-वृद्धिकर यज्ञसदन कलाभवन ज्ञानमन्दिर को (स्योनम्) सुखरूप (आ सदन्तु) प्राप्त हों ॥८॥ अध्यात्मदृष्टि से−ब्रह्मयज्ञ की साधक परमात्मा द्वारा भरणीय धारणीय स्तुति, एषणीय चाहने योग्य प्रार्थना, सरणीय-पास आने योग्य उपासना ये तीन देवियाँ सुकार्यसाधक शीघ्र सिद्धिप्रद उपयुक्त होवें ॥८॥
भावार्थभाषाः - सूर्य की ज्योति, विद्युत्, अग्नि ये तीन यज्ञसदन, कलाभवन, विज्ञानमन्दिर में उपयुक्त होती हैं, शीघ्र कार्यसाधक सिद्धिप्रद हैं, सुखकर हैं, एवं ब्रह्मयज्ञ में स्तुति, प्रार्थना, उपासना आवश्यक है परमात्मा की प्राप्ति के लिये ॥८॥