पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने-आजुह्वानः) ऋत्विजों द्वारा आह्वान किये जाते हुए-नियुक्त किये जाते हुए अग्निदेव या स्तुति करनेवालों के द्वारा आमन्त्रित किये जाते हुए परमात्मन् ! (त्वम्-ईड्यः) तू अध्येषणीय-प्रयोजनीय या वन्दना करने योग्य है (वसुभिः) बसानेवाले ज्वलनधर्मों के साथ या तेरे में बसनेवाले उपासकों के साथ (सजोषाः) समानरूप से सेवन करता हुआ या समान प्रीति करता हुआ (आयाहि) भलीभाँति प्राप्त हो (यह्व) हे महान् शक्तिवाले ! (देवानाम्) वायु आदि-भौतिक देवों का या मुमुक्षुओं का (होता-असि) प्रेरक है (इषितः-यजीयान्) हमारे द्वारा प्रयुक्त हुआ या स्तुति में लाया हुआ अतिशय से यज्ञ करानेवाला या सङ्गति करनेवाला होता हुआ (सः) वह तू (एवम्-यक्षि) इनको प्रेरित करता है ॥३॥
भावार्थभाषाः - ऋत्विजों के द्वारा अग्नि यज्ञ में नियुक्त की हुई अपने ज्वलनधर्मों से वायु आदि देवों के प्रति हव्य पदार्थ पहुँचाती है, उन्हें उपयुक्त बनाती है एवं परमात्मा अध्यात्मयज्ञ में आमन्त्रित हुआ अपने अन्दर बसनेवाले उपासकों के साथ प्रीतिभाव बनाता हुआ समागम करता है ॥३॥