पदार्थान्वयभाषाः - (नृचक्षसः) जगत् में जीवनरस के नायक भौतिक देवों को देखते हैं जानते हैं (ते) वे ऐसे द्रष्टा विद्वान् (शतधारं वायुम्) बहुत धारण शक्तिवाले वायु को, तथा (स्वर्विदम् अर्कम्) सुखमय प्रकाश प्राप्त करानेवाले सूर्य को (अभि चक्षते) ठीक जानते हैं (हविः) उन वायु सूर्य के लिये हव्यपदार्थ अग्नि में देते हैं (ये सङ्गमे) जो विद्वानों के सम्मेलन में उपदेशश्रवणप्रसङ्ग में (पृणन्ति) उन्हें भोजन आदि से तृप्त करते हैं (च) और (प्र यच्छन्ति) उन्हें धन आदि देते भी हैं (ते) वे (सहमातरं दक्षिणां दुहते) रस रक्त मांस मेद हड्डी मज्जा शुक्र को निर्माण करनेवाली जीवनशक्ति को पूरित करते हैं-सम्प्राप्त कराते हैं ॥४॥
भावार्थभाषाः - भौतिकविज्ञानवेत्ता जन जानते हैं कि जगत् में जीवनरस के नायक वायु और सूर्य हैं, जो शरीरस्थ नाड़ियों में प्रगति तथा उत्तेजना देनेवाले हैं। उनको उपयोगी बनाने के लिए अग्नि में होमद्रव्य से होम करना चाहिए तथा विद्वानों के उपदेशश्रवण के प्रसङ्ग में उनको अच्छे भोजन से तृप्त करना धन आदि देना चाहिए। यह ऐसी दक्षिणा रस रक्त आदि सप्त धातुओं की निर्माण करनेवाली शक्ति मानो दान दी जाती है ॥४॥