पदार्थान्वयभाषाः - (उष्टारा-इव) जैसे क्षुधा दाह को-भूख की जलन को प्राप्त हुए दो सहयोगी पशु (फर्वरेषु) पूर्ण घासस्थानों में (श्रयेथे) आश्रय लेते हुए वैसे तुम स्त्री-पुरुष कामदाह से पीड़ित हुए अध्यात्मभोजनपूर्ण महात्माओं के आश्रमों में आश्रय लेते हो (श्वात्र्या) दो धनी (प्रायोगा-इव) प्रयोगकुशल व्यापारकुशल (शासुः-एथः) शासक-परमात्मप्रशंसक स्तुति करनेवाले के समीप में जाते हैं श्रद्धा दर्शाने के लिए, वैसे तुम स्त्री-पुरुष सन्तान धनवाले होते हुए गृहस्थधर्म के उपदेशक पुरोहित के पास जाते हो (दूता-इव हि) जैसे दो दूत सन्देशवाहक राजा के निमित्त प्रियकारी होते हैं, वैसे तुम स्त्री-पुरुष (यशसा जनेषु स्थः) जनों में जनसमाज में अपने सदगुणों के यश से प्रिय होते हो (महिषा-इव) जैसे दो भैंसें (अवपानात् मा-अप स्थातम्) जलाशय से नहीं अलग होतीं, वैसे तुम स्त्री-पुरुष ज्ञानामृत के आशय से पृथक् नहीं होते हो ॥२॥
भावार्थभाषाः - सुशिक्षित स्त्री-पुरुषों को चाहिए कि विषय-काम दाह से बचने के लिए अध्यात्म चर्चावाले महात्माओं के आश्रम में आश्रय लें, सन्तानधन से पूर्ण हुए गृहस्थधर्म के उपदेशक के पास जाएँ, गृहस्थ चलाने का उपदेश लें, अपने सद्गुणों के यश से मानव समाज के प्रिय बनें और जहाँ ज्ञानामृत का पान मिले, वहाँ आश्रय लें ॥२॥