पदार्थान्वयभाषाः - (रोदस्योः-गर्भः) द्युलोक और पृथिवीलोक का गर्भ-गर्भसमान मध्य में वर्त्तमान अथवा उनका तथा उनके ऊपर स्थित पदार्थों का वर्णन करनेवाला-प्रकट करनेवाला (सः-जातः-असि) वह तू सूर्य दृष्टिपथ में आया होता है (ओषधीषु) तेरे ओष-ताप को पीनेवाली पृथिवियों पर तथा उन पर स्थित ओषधियों में (विभृतः) विशेषरूप से प्रविष्ट हुआ (चारुः) चरणीय-भोजन पाक होम आदि कार्यों में सेवनीय (अग्ने) अग्नि नाम से पार्थिव अग्नि ! तू कहा जाता है (चित्रः शिशुः) दर्शनीय तथा प्रशंसनीय है (मातृभ्यः-अधि) जब पृथिवियों पर (गाः प्रकनिक्रदत्) अपनी किरणों-ज्वालाओं को प्रेरित करता हुआ (तमांसि-अक्तून् परि) अग्निरूप से अन्धकारों को परे भगाता है और सूर्यरूप से रात्रियों को परे हटाता है ॥२॥
भावार्थभाषाः - पृथिवलोक और द्युलोक का गर्भ-गर्भसमान मध्य में रहनेवाला तथा उनका और उन पर स्थित पदार्थों को दर्शाने-बतानेवाला सूर्य है। पृथिवी पर से अग्निरूप से अन्धकारों को दूर भगाता है, सूर्यरूप से रात्रियों को परे हटाता है। ऐसे हे विद्यासूर्य विद्वान् ! मानवसमाज एवं प्रत्येक गृह में प्रवचन कर अज्ञानान्धाकर-अविद्यारात्रि को भगाकर सावधान करें ॥२॥