स न॒: सिन्धु॑मिव ना॒वयाति॑ पर्षा स्व॒स्तये॑। अप॑ न॒: शोशु॑चद॒घम् ॥
sa naḥ sindhum iva nāvayāti parṣā svastaye | apa naḥ śośucad agham ||
सः। नः॒। सिन्धु॑म्ऽइव। ना॒वया॑। अति॑। प॒र्ष॒। स्व॒स्तये॑। अप॑। नः॒। शोशु॑चत्। अ॒घम् ॥ १.९७.८
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर वह कैसा है, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ।
हे जगदीश्वर स भवान् कृपया नोऽस्माकं स्वस्तये नावया सिन्धुमिव दुःखान्यति पर्ष नोऽस्माकमघमपशोशुचद्भृशं दूरीकुर्यात् ॥ ८ ॥