द्विषो॑ नो विश्वतोमु॒खाति॑ ना॒वेव॑ पारय। अप॑ न॒: शोशु॑चद॒घम् ॥
dviṣo no viśvatomukhāti nāveva pāraya | apa naḥ śośucad agham ||
द्विषः॑। नः॒। वि॒श्व॒तः॒ऽमु॒ख॒। अति॑। ना॒वाऽइ॑व। पा॒र॒य॒। अप॑। नः॒। शोशु॑चत्। अ॒घम् ॥ १.९७.७
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर भी वह परमेश्वर कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ।
हे विश्वतोमुख परमात्मँस्त्वं नो नावेव द्विषोऽतिपारय नोऽस्माकमघं शत्रूद्भवं दुःखं भवानपशोशुचत् ॥ ७ ॥