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द्विषो॑ नो विश्वतोमु॒खाति॑ ना॒वेव॑ पारय। अप॑ न॒: शोशु॑चद॒घम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

dviṣo no viśvatomukhāti nāveva pāraya | apa naḥ śośucad agham ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

द्विषः॑। नः॒। वि॒श्व॒तः॒ऽमु॒ख॒। अति॑। ना॒वाऽइ॑व। पा॒र॒य॒। अप॑। नः॒। शोशु॑चत्। अ॒घम् ॥ १.९७.७

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:97» मन्त्र:7 | अष्टक:1» अध्याय:7» वर्ग:5» मन्त्र:7 | मण्डल:1» अनुवाक:15» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी वह परमेश्वर कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (विश्वतोमुख) सबसे उत्तम ऐश्वर्य्य से युक्त परमात्मन् ! आप (नावेव) जैसे नाव से समुद्र के पार हों वैसे (नः) हम लोगों को (द्विषः) जो धर्म से द्वेष करनेवाले अर्थात् उससे विरुद्ध चलनेवाले उनसे (अति, पारय) पार पहुँचाइये और (नः) हम लोगों के (अघम्) शत्रुओं से उत्पन्न हुए दुःख को (अप, शोशुचत्) दूर कीजिये ॥ ७ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे न्यायाधीश नाव में बैठाकर समुद्र के पार वा निर्जन जङ्गल में डाकुओं को रोक के प्रजा की पालना करता है, वैसे ही अच्छे प्रकार उपासना को प्राप्त हुआ ईश्वर अपनी उपासना करनेवालों के काम, क्रोध, लोभ, मोह, भय, शोकरूपी शत्रुओं को शीघ्र निवृत्त कर जितेन्द्रियपन आदि गुणों को देता है ॥ ७ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ।

अन्वय:

हे विश्वतोमुख परमात्मँस्त्वं नो नावेव द्विषोऽतिपारय नोऽस्माकमघं शत्रूद्भवं दुःखं भवानपशोशुचत् ॥ ७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (द्विषः) ये धर्मं द्विषन्ति तान् (नः) अस्मान् (विश्वतोमुख) विश्वतः सर्वतो मुखमुत्तममैश्वर्यं यस्य तत्सम्बुद्धौ (अति) उल्लङ्घने (नावेव) यथा सुदृढया नौकया समुद्रपारं गच्छति तथा (पारय) पारं प्रापय (अप, नः०) इति पूर्ववत् ॥ ७ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यथा न्यायाधीशो नौकायां स्थापयित्वा समुद्रपारे निर्जने जाङ्गले देशे दस्य्वादीन् संनिरुध्य प्रजाः पालयति तथैव सम्यगुपासित ईश्वर उपासकानां कामक्रोधलोभमोहभयशोकादीन् शत्रून् सद्यो निवार्य्य जितेन्द्रियत्वादीन् गुणान् प्रयच्छति ॥ ७ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसा न्यायाधीश नावेत बसून समुद्र पार करतो, निर्जन जंगलात डाकूंना रोखून प्रजेचे पालन करतो तसेच चांगल्या प्रकारे उपासना केलेला ईश्वर आपली उपासना करणाऱ्यांना काम, क्रोध, लोभ, मोह, भय, शोकरूपी शत्रूंपासून तात्काळ निवृत्त करून जितेंद्रियता इत्यादी गुण देतो. ॥ ७ ॥