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सोम॑ गी॒र्भिष्ट्वा॑ व॒यं व॒र्धया॑मो वचो॒विद॑:। सु॒मृ॒ळी॒को न॒ आ वि॑श ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

soma gīrbhiṣ ṭvā vayaṁ vardhayāmo vacovidaḥ | sumṛḻīko na ā viśa ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सोम॑। गीः॒ऽभिः। त्वा॒। व॒यम्। व॒र्धया॑मः। व॒चः॒ऽविदः॑। सु॒ऽमृ॒ळी॒कः। नः॒। आ। वि॒श॒ ॥ १.९१.११

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:91» मन्त्र:11 | अष्टक:1» अध्याय:6» वर्ग:21» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:14» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सोम) जानने योग्य गुण, कर्म, स्वभावयुक्त परमेश्वर ! जिस कारण (सुमृळीकः) अच्छे सुखके करनेवाले वैद्य आप और सोम आदि ओषधिगण (नः) हमलोगों को (आ) (विश) प्राप्त हो, इससे (त्वा) आपको और उस ओषधिगण को (वचोविदः) जानने योग्य पदार्थों को जानते हुए (वयम्) हम (गीर्भिः) विद्या से शुद्ध की हुई वाणियों से नित्य (वर्द्धयामः) बढ़ाते हैं ॥ ११ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। ईश्वर, विद्वान् और ओषधि समूह के तुल्य प्राणियों को कोई सुख करनेवाला नहीं है, इससे उत्तम शिक्षा और विद्याऽध्ययन से उक्त पदार्थों के बोध की वृद्धि करके मनुष्यों को नित्य वैसे ही आचरण करना चाहिये ॥ ११ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ।

अन्वय:

हे सोम यतः सुमृळीको वैद्यस्त्वं नोऽस्मानाविश तस्मात् त्वा त्वां वचोविदो वयं गीर्भिर्नित्यं वर्द्धयामः ॥ ११ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) विज्ञातव्यगुणकर्मस्वभाव ! (गीर्भिः) विद्यासुसंस्कृताभिर्वाग्भिः (त्वा) त्वाम् (वयम्) (वर्धयामः) (वचोविदः) विदितवेदितव्याः (सुमृळीकः) सुष्ठु सुखकारी (नः) अस्मान् (आ) आभिमुख्ये (विश) ॥ ११ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र श्लेषालङ्कारः। न हीश्वरविद्वदोषधिगणैस्तुल्यः प्राणिनां सुखकारी कश्चिद्वर्त्तते तस्मात्सुशिक्षाध्ययनाभ्यामेतेषां बोधवृद्धिं कृत्वा तदुपयोगश्च मनुष्यैर्नित्यमनुष्ठेयः ॥ ११ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. ईश्वर, विद्वान व औषधी समूहासारखे प्राण्यांना सुखी करणारे कोणी नसते. त्यासाठी उत्तम शिक्षण व विद्याऽध्ययनाने वरील पदार्थांच्या ज्ञानात वाढ करून माणसांनी नित्य तसे आचरण करावे. ॥ ११ ॥