वांछित मन्त्र चुनें

एमे॑नं सृजता सु॒ते म॒न्दिमिन्द्रा॑य म॒न्दिने॑। चक्रिं॒ विश्वा॑नि॒ चक्र॑ये॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

em enaṁ sṛjatā sute mandim indrāya mandine | cakriṁ viśvāni cakraye ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। ई॒म्। ए॒न॒म्। सृ॒ज॒त॒। सु॒ते। म॒न्दिम्। इन्द्रा॑य। म॒न्दिने॑। चक्रि॑म्। विश्वा॑नि। चक्र॑ये॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:9» मन्त्र:2 | अष्टक:1» अध्याय:1» वर्ग:17» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:3» मन्त्र:2


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

शिल्पविद्या के उत्तम साधन जल और अग्नि का वर्णन अगले मन्त्र में किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वानो ! (सुते) उत्पन्न हुए इस संसार में (विश्वानि) सब सुखों के उत्पन्न होने के अर्थ (मन्दिने) ऐश्वर्यप्राप्ति की इच्छा करने तथा (मन्दिम्) आनन्द बढ़ानेवाले (चक्रये) पुरुषार्थ करने के स्वभाव और (इन्द्राय) परम ऐश्वर्य होनेवाले मनुष्य के लिये (चक्रिम्) शिल्पविद्या से सिद्ध किये हुए साधनों में (एनम्) इन (ईम्) जल और अग्नि को (आसृजत) अति प्रकाशित करो॥२॥
भावार्थभाषाः - विद्वानों को उचित है कि इस संसार में पृथिवी से लेके ईश्वरपर्य्यन्त पदार्थों के विशेषज्ञान उत्तम शिल्प विद्या से सब मनुष्यों को उत्तम-उत्तम क्रिया सिखाकर सब सुखों का प्रकाश करना चाहिये॥२॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ शिल्पविद्यानुषङ्गिणी अग्निजले उपदिश्येते।

अन्वय:

हे विद्वांसः ! सुत उत्पन्नेऽस्मिन्पदार्थसमूहे जगति विश्वानि कार्य्याणि कर्त्तुं मन्दिन इन्द्राय जीवाय मन्दिं चक्रये चक्रिमासृजत॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) क्रियार्थे (ईम्) जलमग्निं वा। ईमित्युदकनामसु पठितम्। (निघं०१.१२) ईमिति पदनामसु च। (निघं०४.२) अनेन शिल्पविद्यासाधकतमावेतौ गृह्येते। (एनम्) अर्थद्वयम् (सृजत) विविधतया प्रकाशयत सम्पादयत वा (सुते) उत्पन्नेऽस्मिन्पदार्थसमूहे जगति (मन्दिम्) मन्दन्ति हर्षन्त्यस्मिँस्तम् (इन्द्राय) ऐश्वर्य्यमिच्छवे जीवाय (मन्दिने) मन्दितुं मन्दयितुं शीलवते (चक्रिम्) शिल्पविद्याक्रियासाधनेषु यानानां शीघ्रचालनस्वभावम् (विश्वानि) सर्वाणि वस्तूनि निष्पादयितुम् (चक्रये) पुरुषार्थकरणशीलाय॥२॥
भावार्थभाषाः - विद्वद्भिरस्मिन् जगति पृथिवीमारभ्येश्वरपर्य्यन्तानां पदार्थानां विज्ञानप्रचारेण सर्वान् मनुष्यान् विद्यया क्रियावतः सम्पाद्य सर्वाणि सुखानि सदा सम्पादनीयानि॥२॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विद्वानांनी या जगात पृथ्वीपासून ईश्वरापर्यंत पदार्थांचे विशेष ज्ञान व उत्तम शिल्पविद्येने उत्तम क्रिया सर्व माणसांना शिकवून सर्व सुख निर्माण केले पाहिजे. ॥ २ ॥