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क॒दा मर्त॑मरा॒धसं॑ प॒दा क्षुम्प॑मिव स्फुरत्। क॒दा नः॑ शुश्रव॒द्गिर॒ इन्द्रो॑ अ॒ङ्ग ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kadā martam arādhasam padā kṣumpam iva sphurat | kadā naḥ śuśravad gira indro aṅga ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

क॒दा। मर्त॑म्। अ॒रा॒धस॑म्। प॒दा। क्षुम्प॑म्ऽइव। स्फु॒र॒त्। क॒दा। नः॒। शु॒श्र॒व॒त्। गिरः॑। इन्द्रः॑। अ॒ङ्ग ॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:84» मन्त्र:8 | अष्टक:1» अध्याय:6» वर्ग:6» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:13» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अङ्ग) शीघ्रकर्त्ता (इन्द्रः) सभा आदि का अध्यक्ष (पदा) विज्ञान वा धन की प्राप्ति से (क्षुम्पमिव) जैसे सर्प्प फण को (स्फुरत्) चलाता है, वैसे (अराधसम्) धनरहित (मर्त्तम्) मनुष्य को (कदा) किस काल में चलावोगे (कदा) किस काल में (नः) हमको उक्त प्रकार से अर्थात् विज्ञान वा धन की प्राप्ति से जैसे सर्प्प फण को चलाता है, वैसे (गिरः) वाणियों को (शुश्रवत्) सुन कर सुनावोगे ॥ ८ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! तुम लोग में से जो दरिद्रों को भी धनयुक्त, आलसियों को पुरुषार्थी और श्रवणरहितों को श्रवणयुक्त करे, उस पुरुष ही को सभा आदि का अध्यक्ष करो। कब यहाँ हमारी बात को सुनोगे और हम कब आपकी बात को सुनेंगे, ऐसी आशा हम करते हैं ॥ ८ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

हे अङ्ग क्षिप्रकारिन्निन्द्रो ! भवान् पदा क्षुम्पमिवाराधसं मर्त्तं कदा स्फुरत् कदा नोऽस्मान् पदा क्षुम्पमिव स्फुरत् कदा नोऽस्माकं गिरः शुश्रवदिति वयमाशास्महे ॥ ८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (कदा) कस्मिन् काले (मर्त्तम्) मनुष्यम् (अराधसम्) धनरहितम् (पदा) पदार्थप्राप्त्या (क्षुम्पमिव) यथा सर्प्पः फणम् (स्फुरत्) संचालयेत् (कदा) (नः) अस्माकम् (शुश्रवत्) श्रुत्वा श्रावयेत् (गिरः) वाणीः (इन्द्रः) सभाद्यध्यक्षः (अङ्ग) शीघ्रकारी। यास्कमुनिरिमं मन्त्रमेवं समाचष्टे। क्षुम्पमहिच्छत्रकं भवति यत् क्षुभ्यते कदा मर्त्तमनाराधयन्तं पादेन क्षुम्पमिवावस्फुरिष्यति। कदा नः श्रोष्यति गिर इन्द्रो अङ्ग। अङ्गेति क्षिप्रनाम । (निरु०५.१६) ॥ ८ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यूयं यो दरिद्रानपि धनाढ्यानलसान् पुरुषार्थयुक्तानश्रुतान् बहुश्रुतांश्च कुर्यात्, तमेव सभाध्यक्षं कुरुत । कदायमस्मद्वार्त्तां श्रोष्यति कदा वयमेतस्य वार्त्तां श्रोष्याम इत्थमाशास्महे ॥ ८ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! तुम्ही गरीब लोकांना श्रीमंत करील, आळशांना पुरुषार्थी करील व न ऐकणाऱ्यांना ऐकावयास लावील अशा पुरुषाला सभा इत्यादीचा अध्यक्ष करा. तुम्ही आमची गोष्ट ऐकावी अशी आशा आम्ही करतो. ॥ ८ ॥