मदे॑मदे॒ हि नो॑ द॒दिर्यू॒था गवा॑मृजु॒क्रतुः॑। सं गृ॑भाय पु॒रू श॒तोभ॑याह॒स्त्या वसु॑ शिशी॒हि रा॒य आ भ॑र ॥
made-made hi no dadir yūthā gavām ṛjukratuḥ | saṁ gṛbhāya purū śatobhayāhastyā vasu śiśīhi rāya ā bhara ||
मदे॑ऽमदे। हि। नः॒। द॒दिः। यू॒था। गवा॑म्। ऋ॒जु॒ऽक्रतुः॑। सम्। गृ॒भा॒य॒। पु॒रु। श॒ता। उ॒भ॒या॒ह॒स्त्या। वसु॑। शि॒शी॒हि। रा॒यः। आ। भ॒र॒ ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर वह ईश्वर का उपासक कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनः स ईश्वरोपासकः कीदृश इत्युपदिश्यते ॥
हे विद्वन् ! ऋजुक्रतुर्ददिस्त्वमीश्वरोपासनेन मदेमदे हि नोऽस्मभ्यममुभया हस्त्या पुरु शता वसु गवां यूथा चाभर रायः सङ्गृभाय शिशीहि ॥ ७ ॥