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तमु॑ त्वा वृत्र॒हन्त॑मं॒ यो दस्यूँ॑रवधूनु॒षे। द्यु॒म्नैर॒भि प्र णो॑नुमः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tam u tvā vṛtrahantamaṁ yo dasyūm̐r avadhūnuṣe | dyumnair abhi pra ṇonumaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तम्। ऊँ॒ इति॑। त्वा॒। वृ॒त्र॒हन्ऽत॑मम्। यः। दस्यू॑न्। अ॒व॒ऽधू॒नु॒षे। द्यु॒म्नैः। अ॒भि। प्र। नो॒नु॒मः॒ ॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:78» मन्त्र:4 | अष्टक:1» अध्याय:5» वर्ग:26» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:13» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह विद्वान् कैसा हो, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् (यः) जो (त्वम्) तू (दस्यून्) महादुष्ट डाकुओं को (अवधूनुषे) कँपा के नष्ट करता है (तम्) उसी (वृत्रहन्तमम्) मेघ वर्षानेवाले सूर्य के समान (त्वा) तेरी (द्युम्नैः) कीर्तिकारी शस्त्रों से हम लोग (अभि) सम्मुख होके (प्रणोनुमः) सब प्रकार स्तुति करें ॥ ४ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! तुम लोग जिसका कोई शत्रु न हो ऐसा विद्वान् सभाध्यक्ष जो कि दुष्ट शत्रुओं को परास्त कर सके, उसकी सदैव सेवा करो ॥ ४ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

हे विद्वन् ! यस्त्वं दस्यूँरवधूनुषे तं वृत्रहन्तमं त्वामु द्युम्नैः सह वर्त्तमाना वयमभिप्रणोनुमः ॥ ४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तम्) उक्तम् (उ) वितर्के (त्वा) त्वाम् (वृत्रहन्तमम्) अतिशयेन वृत्रस्य हन्तारम् (यः) विद्वान् (दस्यून्) महादुष्टान् (अवधूनुषे) अतिकम्पयति (द्युम्नैः) यशसा प्रकाशमानैः शस्त्रास्त्रैः (अभि) आभिमुख्ये (प्र) प्रकृष्टे (नोनुमः) भृशं स्तुमः ॥ ४ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यूयं योऽजातशत्रुः सभाध्यक्षः दुष्टाचारान् शत्रून् पराजयते तं सदा सेवध्वम् ॥ ४ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! ज्याचा कोणी शत्रू नसेल, असा विद्वान सभाध्यक्ष, जो दुष्ट शत्रूंना पराजित करू शकेल, त्याची सेवा करा. ॥ ४ ॥