अब अगले मन्त्र में ईश्वर और विद्युत् अग्नि के गुणों का वर्णन किया है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे (धीराः) ज्ञानवाले विद्वान् मनुष्यो ! (संमाय) अच्छे प्रकार मान कर (सद्मेव) जैसे घर वा संग्राम के लिये जिस लाभ को (चक्रुः) करते हो, वैसे (यः) जो जगदीश्वर वा बिजुली (महित्वा) सत्कार करके (वीरुत्सु) रचना विशेष से निरोध प्राप्त हुए कारण-कार्य द्रव्यों में (प्रजाः) प्रजा (विरोधत्) विशेष कर के आवरण करता है, जो (उत) (प्रसूषु) उत्पन्न होनेवालों में भी (अन्तः) मध्य में वर्त्तमान है, जो (उत) (विश्वायुः) पूर्ण आयुयुक्त भी (चित्तिः) अच्छे प्रकार जाननेवाला (दमे) शान्तियुक्त घर तथा (अपाम्) प्राण वा जलों के मध्य में प्रजा को धारण करता है, उसकी सेवा अच्छे प्रकार करो ॥ ५ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में श्लेष और उपमालङ्कार हैं। मनुष्यों को चाहिये कि जो अन्तर्यामीरूप तथा रूप वेगादि गुणों से प्रजा में नियत (संयमन) करता है, उसी जगदीश्वर की उपासना और विद्युत् अग्नि को अपने कार्यों में संयुक्त करके जैसे विद्वान् लोग घर में स्थित हुए संग्राम में शत्रुओं को जीत कर सुखी करते हैं, वैसे सुखी करे ॥ ५ ॥ इस सूक्त में ईश्वर, सभाध्यक्ष और विद्युत्, अग्नि के गुणों का वर्णन होने से पूर्व सूक्तार्थ के साथ इस सूक्तार्थ की सङ्गति जाननी चाहिये ॥