दु॒रोक॑शोचिः॒ क्रतु॒र्न नित्यो॑ जा॒येव॒ योना॒वरं॒ विश्व॑स्मै ॥
durokaśociḥ kratur na nityo jāyeva yonāv araṁ viśvasmai ||
दु॒रोक॑ऽशोचिः॑। क्रतुः॑। न। नित्यः॑। जा॒याऽइ॑व। योनौ॑। अर॑म्। विश्व॑स्मै ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर वह कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥
यद्यो मनुष्यो क्रतुर्नेव नित्यो जायेव योनावरं कर्त्ता श्वेतो नेव विक्षु रथो नेव रुक्मी दुरोकशोचिर्विश्वस्मै सर्वसुखकर्त्ता समत्सु चित्रोऽभ्राट् त्वेषोऽस्ति स सम्राड् भवितुमर्हति ॥ ३ ॥