दा॒धार॒ क्षेम॒मोको॒ न र॒ण्वो यवो॒ न प॒क्वो जेता॒ जना॑नाम् ॥
dādhāra kṣemam oko na raṇvo yavo na pakvo jetā janānām ||
दा॒धार॑। क्षेम॑म्। ओकः॑। न। र॒ण्वः॑। यवः॑। न। प॒क्वः। जेता॑। जना॑नाम् ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर वह मनुष्य कैसा हो, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनः स मनुष्यः कीदृशो भवेदित्युपदिश्यते ॥
यो मनुष्य ओको नेव रण्वः पक्वो यवो नेव पक्वऋषिर्नेव स्तुभ्वा वाजी नेव प्रीतो विक्षु प्रशस्तो जनानां जेता वयो दधाति स क्षेमं दाधार ॥ २ ॥