पु॒ष्टिर्न र॒ण्वा क्षि॒तिर्न पृ॒थ्वी गि॒रिर्न भुज्म॒ क्षोदो॒ न शं॒भु ॥
puṣṭir na raṇvā kṣitir na pṛthvī girir na bhujma kṣodo na śambhu ||
पु॒ष्टिः। न। र॒ण्वा। क्षि॒तिः। न। पृ॒थ्वी। गि॒रिः। न। भुज्म॑। क्षोदः॑। न। श॒म्ऽभु ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर वह परमात्मा कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनः स कीदृशोऽस्तीत्युपदिश्यते ॥
यस्तमेतं परमात्मानं रण्वा पुष्टिर्नेव क्षितिः पृथ्वी नेव गिरिर्भुज्मनेव क्षोदः शंभुनेवाऽज्मन्नत्यो नेव सर्गप्रतक्तः क्षोदो नेव को वराते वृणुते स पूर्णविद्यो भवति ॥ ३ ॥