वांछित मन्त्र चुनें

स॒ना॒युवो॒ नम॑सा॒ नव्यो॑ अ॒र्कैर्व॑सू॒यवो॑ म॒तयो॑ दस्म दद्रुः। पतिं॒ न पत्नी॑रुश॒तीरु॒शन्तं॑ स्पृ॒शन्ति॑ त्वा शवसावन्मनी॒षाः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sanāyuvo namasā navyo arkair vasūyavo matayo dasma dadruḥ | patiṁ na patnīr uśatīr uśantaṁ spṛśanti tvā śavasāvan manīṣāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स॒ना॒ऽयुवः॑। नम॑सा। नव्यः॑। अ॒र्कैः। व॒सु॒ऽयवः॑। म॒तयः॑। द॒स्म॒। द॒द्रुः॒। पति॑म्। न। पत्नीः॑। उ॒श॒तीः। उ॒शन्त॑म्। स्पृ॒शन्ति॑। त्वा॒। श॒व॒सा॒ऽव॒न्। म॒नी॒षाः ॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:62» मन्त्र:11 | अष्टक:1» अध्याय:5» वर्ग:2» मन्त्र:6 | मण्डल:1» अनुवाक:11» मन्त्र:11


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी दिन और रात्रि कैसे तथा इनके जाननेवाले विद्वान् लोग कैसे हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (शवसावन्) बलयुक्त (दस्म) अविद्यान्धकारविनाशक सभापते ! तू जैसे (सनायुवः) सनातन कर्म के करनेवालों के समान आचरण करते (नमसा) अन्न वा नमस्कार तथा (अर्कैः) मन्त्र अर्थात् विचारों के साथ वर्त्तमान (वसूयवः) अपने लिये विद्या, धनों और (मनीषाः) विज्ञानों के इच्छा करने (मतयः) सबको जाननेवाले विद्वान् लोग (न) जैसे (नव्यः) नवीन (उशतीः) काम की चेष्टा से युक्त (पत्नीः) स्त्री (उशन्तम्) काम की इच्छा करनेवाले (पतिम्) पति का (स्पृशन्ति) आलिङ्गन करती हैं और जैसे (दद्रुः) कुटिल गति को प्राप्त होनेवालों को जानते हैं, वैसे (त्वा) तुझको प्रजा सेवें ॥ ११ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। मनुष्यों को समझना चाहिये कि जैसे स्त्री-पुरुषों के साथ वर्त्तमान होने से सन्तानों की उत्पत्ति होती है, वैसे ही रात-दिनों के एक-साथ वर्तमान होने से सब व्यवहार सिद्ध होते हैं। और जैसे सूर्य का प्रकाश और पृथिवी की छाया के विना रात और दिन का सम्भव नहीं होता, वैसे ही स्त्री-पुरुष के विना मैथुनी सृष्टि नहीं हो सकती ॥ ११ ॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्ते कीदृशा एतद्वेदितारो विद्वांश्चेत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

हे शवसावन् दस्म सभापते ! त्वं यथा सनायुवो नमसाऽर्कैः सह वर्त्तमाना वसूयवो मनीषा मतय उशन्तं पतिं नोशन्तीर्नव्यः पत्नीः स्पृशन्ति यथा च दद्रुः कुटिलां गतिं गच्छन्ति तथा त्वा प्रजाः सेवन्ताम् ॥ ११ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सनायुवः) सनातनस्य कर्मणः कर्त्तार इवाचरन्तः (नमसा) नमस्कारेण युक्ताः (नव्यः) नवीना युवतयः। अत्र सुपां सुलुक् इति जसः स्थाने सुः। (अर्कैः) मन्त्रैर्विचारैः सह (वसूयवः) आत्मनो वसूनि विद्याधनानीच्छन्तः (मतयः) मन्यन्ते जानन्ति ये ते विद्वांसः (दस्म) अन्धकारोपक्षेतः (दद्रुः) द्रान्ति (पतिम्) पालयितारम् (न) इव (पत्नीः) भार्य्या युवतयः (उशन्तीः) कामयमानाः (उशन्तम्) कामयमानम् (स्पृशन्ति) आलिङ्गयन्ति (त्वा) (शवसावन्) बलयुक्त (मनीषाः) ये मनांसि विज्ञानानीषन्ते ते। अत्र शकन्ध्वादित्वात् पररूपम् ॥ ११ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। यथा स्त्रीपुरुषयोः सह वर्त्तमानेनापत्यान्युत्पद्यन्ते तथैव रात्रिंदिवयोः सह वर्त्तमानेन सर्वे व्यवहारा जायन्ते। यथा च सूर्य्यप्रकाशभूमिच्छायाभ्यां विनैतयोरुत्पत्तिर्भवितुं न शक्या तथा दम्पतीभ्यां विना मैथुनसृष्ट्युत्पत्तिरसंभवा ॥ ११ ॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. माणसांनी हे जाणावे की जसे स्त्री-पुरुष एकत्र राहिल्याने संतानांची उत्पत्ती होते तसेच रात्र व दिवस बरोबर असल्यामुळे सर्व व्यवहार सिद्ध होतात व जसा सूर्याचा प्रकाश व पृथ्वीच्या छायेशिवाय रात्र व दिवस होणे शक्य नाही तसेच स्त्री-पुरुषाशिवाय मैथुनी सृष्टी होऊ शकत नाही. ॥ ११ ॥