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होता॑रं स॒प्त जु॒ह्वो॒३॒॑ यजि॑ष्ठं॒ यं वा॒घतो॑ वृ॒णते॑ अध्व॒रेषु॑। अ॒ग्निं विश्वे॑षामर॒तिं वसू॑नां सप॒र्यामि॒ प्रय॑सा॒ यामि॒ रत्न॑म् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

hotāraṁ sapta juhvo yajiṣṭhaṁ yaṁ vāghato vṛṇate adhvareṣu | agniṁ viśveṣām aratiṁ vasūnāṁ saparyāmi prayasā yāmi ratnam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

होता॑रम्। स॒प्त। जु॒ह्वः॑। यजि॑ष्ठम्। यम्। वा॒घतः॑। वृ॒णते॑। अ॒ध्व॒रेषु॑। अ॒ग्निम्। विश्वे॑षाम्। अ॒र॒तिम्। वसू॑नाम्। स॒प॒र्यामि॑। प्रय॑सा। यामि॑। रत्न॑म् ॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:58» मन्त्र:7 | अष्टक:1» अध्याय:4» वर्ग:24» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:11» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जिस के (सप्त) सात (जुह्वः) सुख की इच्छा के साधन हैं, उस (होतारम्) सुखों के दाता (यजिष्ठम्) अतिशय सङ्गति में निपुण (विश्वेषाम्) सब (वसूनाम्) पृथिव्यादि लोकों को (अरतिम्) प्राप्त होनेहारा (यम्) जिस को (वाघतः) बुद्धिमान् लोग (प्रयसा) प्रीति से (अध्वरेषु) अहिंसनीय गुणों में (अग्निम्) अग्नि के सदृश (वृणते) स्वीकार करते हैं, उस (रत्नम्) रमणीयानन्द स्वरूपवाले जीव को मैं (यामि) प्राप्त होता और (सपर्यामि) सेवा करता हूँ ॥ ७ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य अपने आत्मा को जान के परब्रह्म को जानते हैं, वे ही मोक्ष पाते हैं ॥ ७ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यस्य सप्त जुह्वस्तं होतारं यजिष्ठं विश्वेषां वसूनामरतिं यं वाघतः प्रयसाऽग्निमिवाध्वरेषु वृणते सम्भजन्ते, तं रत्नमहं यामि सपर्यामि च ॥ ७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (होतारम्) सुखदातारम् (सप्त) एतत्संख्याकाः (जुह्वः) याभिर्जुह्वत्युपदिशन्ति परस्परं ताः (यजिष्ठम्) अतिशयेन यष्टारम् (यम्) शिल्पकार्योपयोगिनम् (वाघतः) मेधाविनः। वाघत इति मेधाविनामसु पठितम्। (निघं०३.१५) (वृणते) सम्भजन्ते (अध्वरेषु) अनुष्ठातव्येषु कर्ममयेषु यज्ञेषु (अग्निम्) पावकम् (विश्वेषाम्) सर्वेषाम् (अरतिम्) प्रापकम् (वसूनाम्) पृथिव्यादीनाम् (सपर्यामि) परिचरामि (प्रयसा) प्रयत्नेन (यामि) प्राप्नोमि (रत्नम्) रमणीयस्वरूपम् ॥ ७ ॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्याः स्वात्मानं विदित्वा परंब्रह्म विजानन्ति त एव मोक्षमधिगच्छन्ति ॥ ७ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे आपल्या आत्म्याला जाणून परब्रह्माला जाणतात तीच मोक्ष प्राप्त करतात. ॥ ७ ॥