इ॒मे त॑ इन्द्र॒ ते व॒यं पु॑रुष्टुत॒ ये त्वा॒रभ्य॒ चरा॑मसि प्रभूवसो। न॒हि त्वद॒न्यो गि॑र्वणो॒ गिरः॒ सघ॑त्क्षो॒णीरि॑व॒ प्रति॑ नो हर्य॒ तद्वचः॑ ॥
ime ta indra te vayam puruṣṭuta ye tvārabhya carāmasi prabhūvaso | nahi tvad anyo girvaṇo giraḥ saghat kṣoṇīr iva prati no harya tad vacaḥ ||
इ॒मे। ते॒। इ॒न्द्र॒। ते। व॒यम्। पु॒रु॒ऽस्तु॒त॒। ये। त्वा॒। आ॒ऽरभ्य॑। चरा॑मसि। प्र॒भु॒व॒सो॒ इति॑ प्रभुऽवसो। न॒हि। त्वत्। अ॒न्यः। गि॒र्व॒णः॒। गिरः॑। सघ॑त्। क्षो॒णीःऽइ॑व। प्रति॑। नः॒। ह॒र्य॒। तत्। वचः॑ ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब अगले मन्त्र में ईश्वर और सभा आदि के अध्यक्ष के गुणों का उपदेश किया है ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथेश्वरगुणा उपदिश्यन्ते ॥
हे प्रभूवसो ! गिर्वणः पुरुष्टुत हर्येन्द्र जगदीश्वर ते तव कृपासहायेनेमे वयं सघत् क्षोणीरिव त्वारभ्य पृथिवीराज्यं चरामसि त्वं नोऽस्मभ्यं गिरः श्रुधि त्वदन्यः कश्चिदपि नो रक्षक इति नहि विजानीमो यच्च भवदुक्तं वेदवचस्तद्वयमाश्रयेम ॥ ४ ॥