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त्वां स्तोमा॑ अवीवृध॒न्त्वामु॒क्था श॑तक्रतो। त्वां व॑र्धन्तु नो॒ गिरः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvāṁ stomā avīvṛdhan tvām ukthā śatakrato | tvāṁ vardhantu no giraḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वाम्। स्तोमाः॑। अ॒वी॒वृ॒ध॒न्। त्वाम्। उ॒क्था। श॒त॒क्र॒तो॒ इति॑ शतऽक्रतो। त्वाम्। व॒र्ध॒न्तु॒। नः॒। गिरः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:5» मन्त्र:8 | अष्टक:1» अध्याय:1» वर्ग:10» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:2» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

ईश्वर ने उक्त अर्थ ही के प्रकाश करनेवाले इन्द्र शब्द का अगले मन्त्र में भी प्रकाश किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - हे (शतक्रतो) असंख्यात कर्मों के करने और अनन्त विज्ञान के जाननेवाले परमेश्वर ! जैसे (स्तोमाः) वेद के स्तोत्र तथा (उक्था) प्रशंसनीय स्तोत्र आपको (अवीवृधन्) अत्यन्त प्रसिद्ध करते हैं, वैसे ही (नः) हमारी (गिरः) विद्या और सत्यभाषणयुक्त वाणी भी (त्वाम्) आपको (वर्धन्तु) प्रकाशित करे॥८॥
भावार्थभाषाः - जो विश्व में पृथिवी सूर्य्य आदि प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रचे हुए पदार्थ हैं, वे सब जगत् की उत्पत्ति करनेवाले तथा धन्यवाद देने के योग्य परमेश्वर ही को प्रसिद्ध करके जनाते हैं, जिससे न्याय और उपकार आदि ईश्वर के गुणों को अच्छी प्रकार जानके विद्वान् भी वैसे ही कर्मों में प्रवृत्त हों॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

एतदर्थमिन्द्रशब्दार्थ उपदिश्यते।

अन्वय:

हे शतक्रतो बहुकर्मवन् बहुप्रज्ञेश्वर ! यथा स्तोमास्त्वामवीवृधन् अत्यन्तं वर्धयन्ति, यथा च त्वमुक्थानि स्तुतिसाधकानि वर्धितानि कृतवान्, तथैव नो गिरस्त्वां वर्धन्तु सर्वथा प्रकाशयन्तु॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वाम्) इन्द्रं परमेश्वरम् (स्तोमाः) वेदस्तुतिसमूहाः (अवीवृधन्) वर्धयन्ति। अत्र लडर्थे लुङ्। (त्वाम्) स्तोतव्यम् (उक्था) परिभाषितुमर्हाणि वेदस्थानि सर्वाणि स्तोत्राणि। पातॄतुदिवचि०। (उणा०२.७) अनेन वचधातोस्थक्प्रत्ययस्तेनोक्थस्य सिद्धिः। शेश्छन्दसि बहुलमिति शेर्लुक्। (शतक्रतो) उक्तोऽस्यार्थः (त्वाम्) सर्वज्येष्ठम् (वर्धन्तु) वर्धयन्तु। अत्रान्तर्गतो ण्यर्थः। (नः) अस्माकम् (गिरः) विद्यासत्यभाषणादियुक्ता वाण्यः। गीरिति वाङ्नामसु पठितम्। (निघं०१.११)॥८॥
भावार्थभाषाः - अत्र लुप्तोपमालङ्कारः। यथा ये विश्वस्मिन्पृथिवीसूर्य्यादयः सृष्टाः पदार्थाः सन्ति ते सर्वे सर्वकर्त्तारं परमेश्वरं ज्ञापयित्वा तमेव प्रकाशयन्ति, तथैतानुपकारानीश्वरगुणाँश्च सम्यग् विदित्वा विद्वांसोऽपीदृश एव कर्मणि प्रवर्त्तेरन्निति॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विश्वात जे पृथ्वी, सूर्य इत्यादी प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष पदार्थ निर्माण केलेले आहेत, ते सर्व जगाची उत्पत्ती करणाऱ्या व धन्यवाद देण्यायोग्य परमेश्वराचीच प्रसिद्धी करतात व त्याची जाणीव करून देतात. न्याय व उपकार इत्यादी ईश्वराच्या गुणांना चांगल्या प्रकारे जाणून विद्वानांनीही तशाच कर्मात प्रवृत्त व्हावे ॥ ८ ॥