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आ त्वा॑ विशन्त्वा॒शवः॒ सोमा॑स इन्द्र गिर्वणः। शं ते॑ सन्तु॒ प्रचे॑तसे॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā tvā viśantv āśavaḥ somāsa indra girvaṇaḥ | śaṁ te santu pracetase ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। त्वा॒। वि॒श॒न्तु॒। आ॒शवः॑। सोमा॑सः। इ॒न्द्र॒। गि॒र्व॒णः॒। शम्। ते॒। स॒न्तु॒। प्रऽचे॑तसे॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:5» मन्त्र:7 | अष्टक:1» अध्याय:1» वर्ग:10» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:2» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

उक्त काम के आचरण करनेवाले जीव को आशीर्वाद कौन देता है, इस बात का प्रकाश अगले मन्त्र में किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - हे धार्मिक (गिर्वणः) प्रशंसा के योग्य कर्म करनेवाले (इन्द्र) विद्वान् जीव ! (आशवः) वेगादि गुण सहित सब क्रियाओं से व्याप्त (सोमासः) सब पदार्थ (त्वा) तुझ को (आविशन्तु) प्राप्त हों, तथा इन पदार्थों को प्राप्त हुए (प्रचेतसे) शुद्ध ज्ञानवाले (ते) तेरे लिये (शम्) ये सब पदार्थ मेरे अनुग्रह से सुख करनेवाले (सन्तु) हों॥७॥
भावार्थभाषाः - ईश्वर ऐसे मनुष्यों को आशीर्वाद देता है कि जो मनुष्य विद्वान् परोपकारी होकर अच्छी प्रकार नित्य उद्योग करके इन सब पदार्थों से उपकार ग्रहण करके सब प्राणियों को सुखयुक्त करता है, वही सदा सुख को प्राप्त होता है, अन्य कोई नहीं॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

क एवमनुष्ठात्रे जीवायाशीर्ददातीत्युपदिश्यते।

अन्वय:

हे धार्मिक गिर्वण इन्द्र विद्वन् मनुष्य ! आशवः सोमासस्त्वा त्वामाविशन्तु, एवंभूताय प्रचेतसे ते तुभ्यं मदनुग्रहेणैते शंसन्तु सुखकारका भवन्तु॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) समन्तात् (त्वा) त्वां जीवम् (विशन्तु) आविष्टा भवन्तु (आशवः) वेगादिगुणसहिताः सर्वक्रियाव्याप्ताः (सोमासः) सर्वे पदार्थाः (इन्द्र) जीव विद्वन् ! (गिर्वणः) गीर्भिर्वन्यते सम्भज्यते स गिर्वणास्तत्सम्बुद्धौ। गिर्वणा देवो भवति गीर्भिरेनं वनयन्ति। (निरु०६.१४) देवशब्देनात्र प्रशस्तैर्गुणैः स्तोतुमर्हो विद्वान् गृह्यते। गिर्वणस इति पदनामसु पठितम्। (निघं०४.३) (शम्) सुखम्। शमिति सुखनामसु पठितम्। (निघं०३.६) (ते) तुभ्यम् (सन्तु) (प्रचेतसे) प्रकृष्टं चेतो विज्ञानं यस्य तस्मै॥७॥
भावार्थभाषाः - ईश्वर ईदृशाय जीवायाशीर्वादं ददाति यदा यो विद्वान् परोपकारी भूत्वा मनुष्यो नित्यमुद्योगं करोति तदैव सर्वेभ्यः पदार्थेभ्यः उपकारं सङ्गृह्य सर्वान् प्राणिनः सुखयति, स सर्वं सुखं प्राप्नोति नेतर इति॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ईश्वर अशा माणसांना आशीर्वाद देतो की जो माणूस विद्वान, परोपकारी बनतो व चांगल्या प्रकारे सदैव उद्योग करतो. सर्व पदार्थांचा उपयोग करून सर्व प्राण्यांना सुखी करतो. त्यालाच सदैव सुख मिळते. इतराला नाही. ॥ ७ ॥