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दि॒वस्क॑ण्वास॒ इन्द॑वो॒ वसु॒ सिन्धू॑नां प॒दे । स्वं व॒व्रिं कुह॑ धित्सथः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

divas kaṇvāsa indavo vasu sindhūnām pade | svaṁ vavriṁ kuha dhitsathaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

दि॒वः । क॒ण्वा॒सः॒ । इन्द॑वः । वसु॑ । सिन्धू॑नाम् । प॒दे । स्वम् । व॒व्रिम् । कुह॑ । धि॒त्स॒थः॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:46» मन्त्र:9 | अष्टक:1» अध्याय:3» वर्ग:34» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:9» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे क्या करें, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (कण्वासः) मेधावी विद्वान् लोगो ! तुम इन कारीगरों को पूछो कि तुम लोग (सिन्धूनाम्) समुद्रों के (पदे) मार्ग में जो (दिवः) प्रकाशमान अग्नि और (इन्दवः) जल आदि हैं उन्हें और (स्वम्) अपना (वव्रिं) सुन्दर रूप युक्त (वसु) धन (कुह) कहां (धित्सथः) धरने की इच्छा करते हो ॥९॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य लोग विद्वानों की शिक्षा के अनुकूल अग्नि जल के प्रयोग से युक्त यानों पर स्थित होके राजा प्रजा के व्यवहार की सिद्धि के लिये समुद्रों के अन्त में जावें आवें तो बहुत उत्तमोत्तम धन को प्राप्त होवें ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

(दिवः) प्रकाशमानानग्न्यादीन् (कण्वासः) शिल्पविद्याविदो मेधाविनः (इन्दवः) जलानि (वसु) धनम् (सिन्धूनाम्) समुद्राणाम् (पदे) गंतव्ये मार्गे (स्वम्) स्वकीयम् (वव्रिम्) रूपयुक्तं पदार्थसमूहम्। वव्रिरिति रूपना० निघं० ३।७। (कुह) क्व (धित्सथः) धर्तुमिच्छथः ॥९॥

अन्वय:

पुनस्तौ किं कुर्य्यातामित्युपदिश्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे कण्वासो विद्वांसो ! यूयमिमौ शिल्पिनौ पृच्छत् युवां सिन्धूनां पदे ये दिवइन्दवः सन्ति तान् स्वं वव्रिं वसु च कुह धित्सथ इति ॥९॥
भावार्थभाषाः - यदि मनुष्या विद्वच्छिक्षानुकूल्येनाऽग्निजलादिसंप्रयुक्तेषु यानेषु स्थित्वा राजकर्मव्यापारयोः सिद्धये समुद्रान्तं गच्छेयुस्तदा पुष्कलं सुरूपं धनम्प्राप्नुयुः ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे विद्वानांच्या शिकविण्यानुसार अग्नी व जलाच्या प्रयोगाने युक्त असलेल्या यानांत बसून राजा व प्रजेच्या व्यवहाराची सिद्धी व्हावी यासाठी समुद्रापार जाणे-येणे करतील तर उत्तमोत्तम धन प्राप्त होईल. ॥ ९ ॥