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तत्त॒दिद॒श्विनो॒रवो॑ जरि॒ता प्रति॑ भूषति । मदे॒ सोम॑स्य॒ पिप्र॑तोः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tat-tad id aśvinor avo jaritā prati bhūṣati | made somasya pipratoḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तत्त॑त् । इत् । अ॒श्विनोः॑ । अवः॑ । ज॒रि॒ता । प्रति॑ । भू॒ष॒ति॒ । मदे॑ । सोम॑स्य । पिप्र॑तोः॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:46» मन्त्र:12 | अष्टक:1» अध्याय:3» वर्ग:35» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:9» मन्त्र:12


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर सभा और सेनापति अश्वियों से क्या पाना चाहिये इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (जरिता) स्तुति करनेवाला विद्वान् मनुष्य (पिप्रतोः) पूरण करनेवाले (अश्विनोः) सभा और सेनापति से (सोमस्य) उत्पन्न हुए जगत् के बीच (मदे) आनन्द युक्त व्यवहार में (अवः) रक्षादि को (प्रतिभूषति) अलंकृत करता है (तत्तत्) उस-२ सुख को प्राप्त होता है ॥१२॥
भावार्थभाषाः - कोई भी विद्वानों से शिक्षा वा क्रिया को ग्रहण किये विना सब सुखों को प्राप्त नहीं हो सकता इससे उसका खोज नित्य करना चाहिये ॥१२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

(तत्तत्) तत्तदुक्तं वक्ष्यमाणं वा सुखम् (इत्) एव (अश्विनोः) उक्तयोः सभासेनेशयोः सकाशात् (अवः) रक्षणादिकम् (जरिता) स्तोता विद्वान् (प्रति) (भूषति) अलङ्करोति (मदे) माद्यन्ति दृष्यन्त्यानन्दन्ति यस्मिन् व्यवहारे तस्मिन् (सोमस्य) उत्पन्नस्य जगतो मध्ये (पिप्रतोः) यौ पिपूर्त्तस्तयोः ॥१२॥

अन्वय:

पुनरेताभ्यां किं प्राप्तव्यमित्युपदिश्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - यो जरिता मनुष्यः पिप्रतोरश्विनोः सकाशात्सोमस्य मदेऽवः प्रति भूषति स तत्तत्सुखमाप्नोति ॥१२॥
भावार्थभाषाः - नहि कैश्चिदपि विद्वच्छिक्षायुक्तया क्रियया विना सर्वाणि सुखानि प्राप्तुं शक्यन्ते तस्मादेतन्नित्यमध्येष्टव्यम् ॥१२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - कोणीही विद्वानांकडून शिक्षण किंवा क्रिया ग्रहण केल्याशिवाय सर्व सुख प्राप्त करू शकत नाही. त्यामुळे त्याचा नित्य शोध घेतला पाहिजे. ॥ १२ ॥