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अभू॑दु॒ भा उ॑ अं॒शवे॒ हिर॑ण्यं॒ प्रति॒ सूर्यः॑ । व्य॑ख्यज्जि॒ह्वयासि॑तः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

abhūd u bhā u aṁśave hiraṇyam prati sūryaḥ | vy akhyaj jihvayāsitaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अभू॑त् । ऊँ॒ इति॑ । भाः । ऊँ॒ इति॑ । अं॒शवे॑ । हिर॑ण्यम् । प्रति॑ । सूर्यः॑ । वि । अ॒ख्य॒त् । जि॒ह्वया॑ । असि॑तः॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:46» मन्त्र:10 | अष्टक:1» अध्याय:3» वर्ग:34» मन्त्र:5 | मण्डल:1» अनुवाक:9» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

इस विषय का उत्तर अगले मन्त्र मे कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे कारीगरो ! तुम लोग जैसे (असितः) अबद्ध अर्थात् जिसका किसी के साथ बन्धन नहीं है (भाः) प्रकाशयुक्त (सूर्य्यः) सूर्य्य के (अंशवे) किरणों के विभागार्थ (जिह्वया) जीभ के समान (व्यख्यत्) प्रसिद्धता से प्रकाशमान सन्मुख (अभूत्) होता है वैसे उसी पर यान का स्थापन कर उसमें उचित स्थान में (हिरण्यम्) सुवर्णादि उत्तम पदार्थों को धरो ॥१०॥
भावार्थभाषाः - हे सवारी पर चलने वाले मनुष्यो ! तुम दिशाओं के जाननेवाले चुम्बक ध्रुव यंत्र और सूर्यादि कारण से दिशाओं को जान यानों को चलाओ और ठहराया भी करो जिससे भ्रान्ति में पड़कर अन्यत्र गमन न हो, अर्थात् जहां जाना चाहते हो ठीक वहीं पहुँचो भटकना न हो ॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

(अभूत्) भवति। अत्र लङर्थे लुङ्। (उ) वितर्के (भा) या भाति प्रकाशयति (उ) (अंशवे) पदार्थानां किरणानां वेगाय (हिरण्यम्) सुवर्णादिकं (प्रति) प्रतीतार्थे (सूर्य्यः) सविता (वि) विविधार्थे (अख्यत्) प्रसिद्धतया प्रकाशेत (जिह्वया) रसनेन्द्रियेणेव किरणज्वालासमूहेन (असितः) अबद्धः ॥१०॥

अन्वय:

तदुत्तरमाह।

पदार्थान्वयभाषाः - हे शिल्पिनौ ! युवां यथाऽसितो भाः सूर्य्योऽशवे जिह्वयेवाख्यत् सन्मुखोऽभूत्तथा तत्सन्निधौ तद्यानां स्थापयित्वा तत्रोचितस्थाने हिरण्यं ज्योतिः सुवर्णादिकं रक्षेत् ॥१०॥
भावार्थभाषाः - हे यानयायिनो मनुष्या ! यूयं ध्रुवयन्त्रसूर्य्यादिनिमित्तेन दिशो विज्ञाय यानानि चालयत स्थापयत च यतो भ्रान्त्याऽन्यत्र गमनं न स्यात् ॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे वाहनात बसणाऱ्या माणसांनो ! तुम्ही दिशांना जाणणाऱ्या चुंबक, ध्रुवयंत्र व सूर्य इत्यादीद्वारे दिशांना जाणून घ्या. याने चालवा व थांबवा. ज्यामुळे भ्रमित न होता इतरत्र जाणार नाही. अर्थात जिथे जाऊ इच्छिता ठीक तिथेच पोचा, भटकू नका. ॥ १० ॥