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सं सी॑दस्व म॒हाँ अ॑सि॒ शोच॑स्व देव॒वीत॑मः । वि धू॒मम॑ग्ने अरु॒षं मि॑येध्य सृ॒ज प्र॑शस्त दर्श॒तम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

saṁ sīdasva mahām̐ asi śocasva devavītamaḥ | vi dhūmam agne aruṣam miyedhya sṛja praśasta darśatam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सम् । सी॒द॒स्व॒ । म॒हान् । अ॒सि॒ । शोच॑स्व । दे॒व॒वीत॑मः । वि । धू॒मम् । अ॒ग्ने॒ । अ॒रु॒षम् । मि॒ये॒ध्य॒ । सृ॒ज । प्र॒श॒स्त॒ । द॒र्स॒तम्॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:36» मन्त्र:9 | अष्टक:1» अध्याय:3» वर्ग:9» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:8» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब अगले मंत्र में सभापति के गुणों का उपदेश किया है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (तेजस्विन्) विद्याविनययुक्त (मियेध्य) प्राज्ञ (अग्ने) विद्वन् सभापते ! जो आप (महान्) बड़े-२ गुणों से युक्त (असि) हैं सो (देववीतमः) विद्वानों को व्याप्त होने हारे आप न्याय धर्म में स्थित होकर (संसीदस्व) सब दोषों का नाश कीजिये और (शोचस्व) प्रकाशित हूजिये हे (प्रशस्त) प्रशंसा करने योग्य राजन् आप (विधूमम्) धूम सदृश मल से रहित (दर्शतम्) देखने योग्य (अरुषम्) रूपको (सृज) उत्पन्न कीजिये ॥९॥
भावार्थभाषाः - प्रशंसित बुद्धिमान् राज पुरुषों को चाहिये कि अग्नि समान तेजस्वि और बड़े-२ गुणों से युक्त हों और श्रेष्ठ गुणवाले पृथिवी आदि भूतों के तत्त्व को जानके प्रकाशमान होते हुए निर्मल देखने योग्य स्वरूपयुक्त पदार्थों को उत्पन्न करें ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

(सम्) सम्यगर्थे (सीदस्व) दोषान् हिन्धि। व्यत्ययेनात्र त्मनेपदम् (महान्) महागुणविशिष्टः (असि) वर्त्तसे (देववीतमः) देवान् पृथिव्यादीन् वेत्ति व्याप्नोति (शोचस्व) प्रकाशस्व। शुचिदीप्तावित्यस्माल्लोट् (देववीतमः) यो देवान् विदुषो व्याप्नोति सोतिशयितः (वि) (धूमम्) धूमसदृशमलरहितम् (अग्ने) तेजस्विन् सभापते (अरुषम्) सुन्दररूपयुक्तम्। अरुषमिति रूपनामसु पठितम्। निघं० ३।७। (मियेध्य) मेधाई अयं प्रयोगः पृषोदरादिना अभीष्टः सिद्ध्यति। (सृज) (प्रशस्त) प्रशंसनीय (दर्शतम्) द्रष्टुमर्हम् ॥९॥

अन्वय:

अथ सभापतेर्गुणा उपदिश्यन्ते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे तेजस्विन् मियेध्याग्ने सभापते यस्त्वं महानसि स सभापते देववीतमः सन्न्याये संसीदस्व शोचस्व हे प्रशस्त राजँस्त्वमत्र विधूमं दर्शतमरुषं सृजोत्पादय ॥९॥
भावार्थभाषाः - मेधाविनो राजपुरुषा अग्निवत् तेजस्विनो महागुणाढ्या भूत्वा दिव्यगुणानां पृथिव्यादिभूतानां तत्त्वं विज्ञाय प्रकाशमानाः सन्तो निर्मलं दर्शनीयं रूपमुत्पादयेयुः ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - प्रशंसित बुद्धिमान राजपुरुषांनी अग्नीप्रमाणे तेजस्वी व मोठमोठ्या गुणांनी युक्त व्हावे व श्रेष्ठ गुणयुक्त पृथ्वी इत्यादी भूताच्या तत्त्वाला जाणून प्रकाशमान होऊन शुद्ध पाहण्यायोग्य स्वरूपयुक्त पदार्थांना उत्पन्न करावे. ॥ ९ ॥