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नी॒चाव॑या अभवद्वृ॒त्रपु॒त्रेन्द्रो॑ अस्या॒ अव॒ वध॑र्जभार । उत्त॑रा॒ सूरध॑रः पु॒त्र आ॑सी॒द्दानुः॑ शये स॒हव॑त्सा॒ न धे॒नुः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

nīcāvayā abhavad vṛtraputrendro asyā ava vadhar jabhāra | uttarā sūr adharaḥ putra āsīd dānuḥ śaye sahavatsā na dhenuḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नी॒चाव॑याः । अ॒भ॒व॒त् । वृ॒त्रपु॑त्रा । इन्द्रः॑ । अ॒स्याः॒ । अव॑ । वधः॑ । ज॒भा॒र॒ । उत्त॑रा । सूः । अध॑रः । पु॒त्रः । आ॒सी॒त् । दानुः॑ । श॒ये॒ । स॒हव॑त्सा । न । धे॒नुः॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:32» मन्त्र:9 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:37» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:7» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह कैसा होता है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे सभापते ! (वृत्रपुत्रा) जिसका मेघ लड़के के समान है वह मेघ की माता (नीचावयाः) निकृष्ट उमरको प्राप्त हुई। (सूः) पृथिवी और (उत्तरा) ऊपरली अन्तरिक्षनामवाली (अभवत्) है (अस्याः) इसके पुत्र मेघ के (वधः) वध अर्थात् ताड़न को (इन्द्रः) सूर्य्य (अवजभार) करता है इससे इसका (नीचावयाः) निकृष्ट उमर को प्राप्त हुआ (पुत्रः) पुत्र मेघ (अधरः) नीचे (आसीत्) गिर पड़ता है और जो (दानुः) सब पदार्थों की देनेवाली भूमि जैसे (सहवत्सा) बछड़े के साथ (धेनुः) गाय हो (न) वैसे अपने पुत्र के हाथ (शये) सोती सी दीखती है वैसे आप अपने शत्रुओं को भूमि के साथ सोते के सदृश किया कीजिये ॥९॥
भावार्थभाषाः - इस मंत्र में उपमालङ्कार है। मेघ की दो माता हैं एक पृथिवी दूसरी अन्तरिक्ष अर्थात् इन्हीं दोनों से मेघ उत्पन्न होता है जैसे कोई गाय अपने बछड़े के साथ रहती है वैसे ही जब जल का समूह मेघ अन्तरिक्ष में जाकर ठहरता है तब उसकी माता अन्तरिक्ष अपने पुत्र मेघ के साथ और जब वह वर्षा से भूमि को आता है तब भूमि उस अपने पुत्र मेघ के साथ सोती सी दीखती है इस मेघ का उत्पन्न करनेवाला सूर्य है इसलिये वह पिता के स्थान में समझा जाता है उस सूर्य्य की भूमि वा अन्तरिक्ष दो स्त्री के समान हैं वह पदार्थों से जल को वायु के द्वारा खींचकर जब अन्तरिक्ष में चढ़ाता है जब वह पुत्र मेघ प्रमत्त के सदृश बढ़कर उठता और सूर्य के प्रकाश को ढकल्लेता है तब सूर्य्य उसको मारकर भूमि में गिरा देता अर्थात् भूमि में वीर्य छोड़ने के समान जल पहुंचाता है इसी प्रकार यह मेघ कभी ऊपर कभी नीचे होता है वैसे ही राजपुरुषों को उचित है कि कंटकरूप शत्रुओं को इधर-उधर निर्बीज करके प्रजा का पालन करें ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

(नीचावयाः) नीचानि वयासि यस्य मेघस्य सः। (अभवत्) भवति। अत्र वर्त्तमाने लङ्। (वृत्रपुत्रा) वृत्रः पुत्र इव यस्याः सा (इन्द्रः) सूर्य्यः (अस्याः) वृत्रमातुः (अव) क्रियायोगे (वधः) वधम्। अत्र हन्तेर्बाहुलकादौणादिकेऽसुनिवघादेशः। (जभार) हरति। अत्र वर्त्तमाने लिट्। हृग्रहोर्हस्य भश्छन्दसि वक्तव्यम् इति भादेशः। (उत्तरा) उपरिस्थाऽन्तरिक्षाख्या। (सूः) सूयत उत्पादयति या सा माता। अत्र #सृङ् धातोः क्विप्।* (अधरः) अधस्थः (पुत्रः) (आसीत्) अस्ति। अत्र वर्त्तमाने लङ्। (दानुः) ददाति या सा। अत्र दाभाभ्यां नुः। उ० ३।३१। इति नुः प्रत्ययः। (शये) शेते। अत्र लोपस्तआत्मनेपदेषु। अ० ७।१।४१। इति लोपः। (सहवत्सा) या वत्सेनसहवर्त्तमाना (न) इव (धेनुः) यथा दुग्धदात्री गौः ॥९॥#[षूङ् धातोः।] *[धात्वादेः षः सः, अ० ६।१।६४। इति सत्त्वम्। सं०]

अन्वय:

पुनः स कीदृशो भवतीत्युपदिश्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे सभाध्यक्ष त्वं यथा वृत्रपुत्रा सूर्भूभिरुतरान्तरिक्षं वाऽभवदस्याः पुत्रस्य वधोवधमिन्द्रोऽवजभारानेनास्याः पुत्रोनीचावया अधर आसीत्। दानुः सहवत्साधेनुः स्वपुत्रेण सहमाता नेव शये शेते तथा स्वशत्रून् पृथिव्यासहशयानान् कुरु ॥९॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। वृत्रस्य द्वे मातरौ वर्त्तेते एका पृथिवी द्वितीयाऽन्तरिक्षं चैतयोर्द्वयोः सकाशादेव वृत्रस्योत्पत्तेः। यथाकाचिद्गौः स्ववत्सेन सह वर्त्तते तथैव यदा जलसमूहो मेघ उपरि गच्छति तदाऽन्तरिक्षाख्या माता स्वपुत्रेण सह शयाना इव दृश्यते। यदा च स वृष्टिद्वारा भूमिमागच्छति तदा भूमिस्तेन स्वपुत्रेण सह शयानेव दृश्यते। अस्य मेघस्य पितृस्थानी सूर्य्योऽस्ति तस्योत्पादकत्वात्। अस्य हि भूम्यन्तरिक्षे द्वे स्त्रियाविव वर्त्तेते यदा स जलमाकृष्य वायुद्वारान्तरिक्षे प्रक्षिपति तदा स पुत्रो मेघो वृद्धिं प्राप्य प्रमत्त इवोन्नतो भवति सूर्यस्तमाहत्य भूमौ निपातयत्येवमयं वृत्रः कदाचिदुपरिस्थः कदाचिदधःस्थो भवति तथैव राज्यपुरुषैः प्रजाकण्टकान् शत्रूनितस्ततः प्रक्षिप्य प्रजाः पालनीयाः ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. मेघाच्या दोन माता आहेत. एक पृथ्वी, दुसरी अंतरिक्ष अर्थात याच दोघींपासून मेघ उत्पन्न होतो. जशी एखादी गाय वासराबरोबर राहते तसेच जेव्हा जलसमूह मेघ अंतरिक्षात असतो तेव्हा त्याची अंतरिक्ष माता आपला पुत्र मेघ याच्याबरोबर असते व जेव्हा तो वृष्टीद्वारे भूमीवर पडतो तेव्हा भूमी त्या आपल्या पुत्र मेघाबरोबर पहुडल्यासारखी दिसते. मेघाला उत्पन्न करणारा सूर्य आहे, त्यासाठी तो पित्याच्या स्थानी आहे. सूर्याला भूमी व अंतरिक्ष अशा दोन स्त्रिया आहेत. तो जलाला पदार्थापासून वायूद्वारे अंतरिक्षात खेचतो व मेघ उन्मत्त पुत्राप्रमाणे सूर्याच्या प्रकाशाला झाकून टाकतो. तेव्हा सूर्य त्याचे हनन करतो व भूमीवर ढकलून देतो. अर्थात जल वीर्याप्रमाणे भूमीत पोहोचते. याप्रकारे मेघ कधी वर तर कधी खाली जातो तसे राजपुरुषांनी इकडे तिकडे असलेल्या कंटकरूपी शत्रूंना पराजित करून प्रजेचे पालन करावे. ॥ ९ ॥