त्वं तम॑ग्ने अमृत॒त्व उ॑त्त॒मे मर्तं॑ दधासि॒ श्रव॑से दि॒वेदि॑वे। यस्ता॑तृषा॒ण उ॒भया॑य॒ जन्म॑ने॒ मयः॑ कृ॒णोषि॒ प्रय॒ आ च॑ सू॒रये॑ ॥
tvaṁ tam agne amṛtatva uttame martaṁ dadhāsi śravase dive-dive | yas tātṛṣāṇa ubhayāya janmane mayaḥ kṛṇoṣi praya ā ca sūraye ||
त्वम्। तम्। अ॒ग्ने॒। अ॒मृ॒त॒ऽत्वे। उ॒त्ऽत॒मे। मर्त॑म्। द॒धा॒सि॒। श्रव॑से। दि॒वेऽदि॑वे। यः। त॒तृ॒षा॒णः। उ॒भया॑य। जन्म॑ने। मयः॑। कृ॒णोषि॑। प्रयः॑। आ। च॒। सू॒रये॑ ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर वह ईश्वर जीवों के लिये क्या करता है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनरीश्वरो जीवेभ्यः किं करोतीत्युपदिश्यते ॥
हे अग्ने जगदीश्वर! त्वं यः सूरिर्मेधावी दिवेदिवे श्रवसे सन्मोक्षमिच्छति तं मर्त्तं मनुष्यमुत्तमेऽमृतत्वे मोक्षपदे दधासि, यश्च सूरिर्मेधावी मोक्षसुखमनुभूय पुनरुभयाय जन्मने तातृषाणः सँस्तस्मात् पदान्निवर्त्तते तस्मै सूरये मयः प्रयश्चाकृणोषि ॥ ७ ॥