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अ॒यमु॑ ते॒ सम॑तसि क॒पोत॑इव गर्भ॒धिम्। वच॒स्तच्चि॑न्न ओहसे॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ayam u te sam atasi kapota iva garbhadhim | vacas tac cin na ohase ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒यम्। ऊँम् इति॑। ते॒। सम्। अ॒त॒सि॒। क॒पोतः॑ऽइव। ग॒र्भ॒ऽधिम्। वचः॑। तत्। चि॒त्। नः॒। ओ॒ह॒से॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:30» मन्त्र:4 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:28» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:6» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी उसी विषय का अगले मन्त्र में प्रकाश किया है॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अयम्) यह इन्द्र अग्नि जो कि परमेश्वर का रचा है (उ) हम जानते हैं कि जैसे (गर्भधिम्) कबूतरी को (कपोत इव) कबूतर प्राप्त हो, वैसे (नः) हमारी (वचः) वाणी को (समोहसे) अच्छे प्रकार प्राप्त होता है और (चित्) वही सिद्ध किया हुआ (नः) हम लोगों को (तत्) पूर्व कहे हुए बल आदि गुण बढ़ानेवाले आनन्द के लिये (अतसि) निरन्तर प्राप्त करता है॥४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे कबूतर अपने वेग से कबूतरी को प्राप्त होता है, वैसे ही शिल्पविद्या से सिद्ध किया हुआ अग्नि अनुकूल अर्थात् जैसे चाहिये वैसे गति को प्राप्त होता है। मनुष्य इस विद्या को उपदेश वा श्रवण से पा सकते हैं॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स एवोपदिश्यते।

अन्वय:

अयमिन्द्राख्योऽग्निरु गर्भधिं कपोत इव नो वचः समोहसे चिन्नस्तत् अतसि॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अयम्) इन्द्राख्योऽग्निः (उ) वितर्के (ते) तव (सम्) सम्यगर्थे (अतसि) निरन्तरं गच्छति प्रापयति। अत्र व्यत्ययः (कपोत इव) पारावत इव (गर्भधिम्) गर्भो धीयतेऽस्यां ताम् (वचः) वर्त्तनम् (तत्) तस्मै पूर्वोक्ताय बलादिगुणवर्द्धकायानन्दाय (चित्) पुनरर्थे (नः) अस्माकम् (ओहसे) आप्नोति॥४॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यथा कपोतो वेगेन कपोतीमनुगच्छति, तथैव शिल्पविद्यया साधितोऽग्निरनुकूलां गतिं गच्छति, मनुष्या एनां विद्यामुपदेशश्रवणाभ्यां प्राप्तुं शक्नुवन्तीति॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे कबूतर आपल्या वेगाने कबुतरीला प्राप्त करते तसेच शिल्पविद्येने सिद्ध केलेला अग्नी अनुकूल अर्थात हवे त्या गतीला प्राप्त करतो. माणूस ही विद्या उपदेश व श्रवणाद्वारे प्राप्त करू शकतो. ॥ ४ ॥