स नो॑ म॒हाँ अ॑निमा॒नो धू॒मके॑तुः पुरुश्च॒न्द्रः। धि॒ये वाजा॑य हिन्वतु॥
sa no mahām̐ animāno dhūmaketuḥ puruścandraḥ | dhiye vājāya hinvatu ||
सः। नः॑। म॒हान्। अ॒नि॒ऽमा॒नः। धू॒मऽके॑तुः। पु॒रु॒ऽच॒न्द्रः। धि॒ये। वाजा॑य। हि॒न्व॒तु॒॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर अगले मन्त्र में भौतिक अग्नि के गुण प्रकाशित किये हैं॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनर्भौतिकगुणा उपदिश्यन्ते॥
मनुष्यैर्यतोऽयं धूमकेतुः पुरुश्चन्द्रोऽनिमानो महानग्निरस्ति, स धिये वाजाय नोऽस्मान् हिन्वतु प्रीणयेत्, तस्मादेतस्य साधनं कार्यम्॥११॥