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स्व॒ग्नयो॒ हि वार्यं॑ दे॒वासो॑ दधि॒रे च॑ नः। स्व॒ग्नयो॑ मनामहे॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

svagnayo hi vāryaṁ devāso dadhire ca naḥ | svagnayo manāmahe ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सु॒ऽअ॒ग्नयः॑। हि। वार्य॑म्। दे॒वासः॑। द॒धि॒रे। च॒। नः॒। सु॒ऽअ॒ग्नयः॑। म॒ना॒म॒हे॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:26» मन्त्र:8 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:21» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:6» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे कैसे वर्त्तें, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

पदार्थान्वयभाषाः - जैसे (स्वग्नयः) उत्तम अग्नियुक्त (देवासः) दिव्यगुणवाले विद्वान् (च) वा पृथिवी आदि पदार्थ (नः) हम लोगों के लिये (वार्यम्) स्वीकार करने योग्य पदार्थों को (दधिरे) धारण करते हैं, वैसे हम लोग (स्वग्नयः) अग्नि के उत्तम अनुष्ठानयुक्त होकर इन्हों से विद्यासमूह को (मनामहे) जानते हैं, वैसे तुम भी जानो॥८॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में लुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को योग्य है कि ईश्वर ने इस संसार में जितने पदार्थ उत्पन्न किये हैं, उनके जानने के लिये विद्याओं का सम्पादन करके कार्यों की सिद्धि करें॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्ते कथं वर्त्तेरन्नित्युपदिश्यते॥

अन्वय:

यथा स्वग्नयो देवासः पृथिव्यादयो वा नोऽस्मभ्यं वार्यं दधिरे हितवन्तस्तथा वयमपि स्वग्नयो भूत्वैतेभ्यो विद्यासमूहं मनामहे विजानीयाम॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (स्वग्नयः) शोभनोऽग्निर्येषां ते मनुष्याः पृथिव्यादयो वा (हि) खलु (वार्यम्) वरितुमर्हं पदार्थसमूहम् (देवासः) दिव्यगुणयुक्ता विद्वांसः। अत्र आज्जसेरसुक् (अष्टा०७.१.५०) इत्यसुगागमः। (दधिरे) हितवन्तः (च) समुच्चये (नः) अस्मभ्यम् (स्वग्नयः) ये शोभनानुष्ठानतेजोयुक्ताः (मनामहे) विजानीयाम। अत्र विकरणव्यत्ययेन शप्॥८॥
भावार्थभाषाः - अत्र लुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैरस्मिन् जगति यावन्तः पदार्था ईश्वरेणोत्पादितास्तेषां विज्ञानाय विद्यां सम्पाद्य कार्यसिद्धिः कार्येति॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात लुप्तोपमालंकार आहे. ईश्वराने या जगात जितके पदार्थ निर्माण केलेले आहेत, त्यांना जाणण्यासाठी माणसांनी विद्या प्राप्त करून कार्य सिद्ध करावे. ॥ ८ ॥