वसि॑ष्वा॒ हि मि॑येध्य॒ वस्त्रा॑ण्यूर्जां पते। सेमं नो॑ अध्व॒रं य॑ज॥
vasiṣvā hi miyedhya vastrāṇy ūrjām pate | semaṁ no adhvaraṁ yaja ||
वसि॑ष्व। हि। मि॒ये॒ध्य॒। वस्त्रा॑णि। ऊ॒र्जा॒म्। प॒ते॒। सः। इ॒मम्। नः॒। अ॒ध्व॒रम्। य॒ज॒॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब छब्बीसवें सूक्त का प्रारम्भ है। उसके पहिले मन्त्र में यज्ञ कराने और करनेवालों के गुण प्रकाशित किये हैं॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
तत्रादिमे मन्त्रे होतृयजमानगुणा उपदिश्यन्ते॥
हे ऊर्जां पते ! मियेध्य होतर्यजमान वा त्वमेतानि वस्त्राणि वसिष्व हि नोऽस्माकमध्वरं यज सङ्गमय॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)पहिल्या सूक्तात वरुणच्या अर्थाचा अनुषङ्गी अर्थात सहायक अग्नी शब्दाचे या सूक्तात प्रतिपादन केल्यामुळे मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर या सव्विसाव्या सूक्ताच्या अर्थाची संगती जाणली पाहिजे.