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इ॒मं मे॑ वरुण श्रुधी॒ हव॑म॒द्या च॑ मृळय। त्वाम॑व॒स्युरा च॑के॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

imam me varuṇa śrudhī havam adyā ca mṛḻaya | tvām avasyur ā cake ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इ॒मम्। मे॒। व॒रु॒ण॒। श्रुधि॑। हव॑म्। अ॒द्य। च॒। मृ॒ळ॒य॒। त्वाम्। अ॒व॒स्युः। आ। च॒के॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:25» मन्त्र:19 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:19» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:6» मन्त्र:19


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वरुण) सब से उत्तम विपश्चित् ! (अद्य) आज (अवस्युः) अपनी रक्षा वा विज्ञान को चाहता हुआ मैं (त्वाम्) आपकी (आ चके) अच्छी प्रकार प्रशंसा करता हूँ, आप (मे) मेरी की हुई (हवम्) ग्रहण करने योग्य स्तुति को (श्रुधि) श्रवण कीजिये तथा मुझको (मृळय) विद्यादान से सुख दीजिये॥१९॥
भावार्थभाषाः - जैसे परमात्मा जो उपासकों द्वारा निश्चय करके सत्य भाव और प्रेम के साथ की हुई स्तुतियों को अपने सर्वज्ञपन से यथावत् सुन कर उनके अनुकूल स्तुति करनेवालों को सुख देता है, वैसे विद्वान् लोग भी धार्मिक मनुष्यों की योग्य प्रशंसा को सुन सुखयुक्त किया करें॥१९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते।

अन्वय:

हे वरुण विद्वन् ! अद्यावस्युरहं त्वामाचके प्रशंसामि त्वं मे मम हवं श्रुधि शृणु, मां च मृळय॥१९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इमम्) प्रत्यक्षमनुष्ठितम् (मे) मम (वरुण) सर्वोत्कृष्टजगदीश्वर विद्वन् वा (श्रुधी) शृणु। अत्र बहुलं छन्दसि श्नोर्लुक् श्रुशृणुपॄकृवृभ्यश्छन्दसि (अष्टा०६.४.१०२) इति हेर्द्ध्यादेशो अन्येषामपि इति दीर्घश्च। (हवम्) आदातुमर्हं स्तुतिसमूहम् (अद्य) अस्मिन् दिने (च) समुच्चये (मृळय) सुखय (त्वाम्) विद्वांसम् (अवस्युः) आत्मनो रक्षणं विज्ञानं चेच्छुः (आ) समन्तात् (चके) प्रशंसामि॥१९॥
भावार्थभाषाः - यथेश्वरः खलूपासकैः सत्यप्रेम्णा यां प्रयुक्तां स्तुतिं सर्वज्ञतया यथावच्छ्रुत्वा तदनुकूलतया स्तावकेभ्यः सुखं प्रयच्छति, तथैव विद्वद्भिरपि भवितव्यम्॥१९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसा परमात्मा उपासकांद्वारे निश्चयाने, सत्य प्रेमाने केलेली स्तुती आपल्या सर्वज्ञतेने योग्य रीतीने ऐकून अनुकूल स्तुती करणाऱ्यांना सुख देतो तसे विद्वान लोकांनीही धार्मिक माणसांची योग्य प्रशंसा ऐकून त्यांना सुखी करावे. ॥ १९ ॥