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नि ष॑साद धृ॒तव्र॑तो॒ वरु॑णः प॒स्त्या३॒॑स्वा। साम्रा॑ज्याय सु॒क्रतुः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ni ṣasāda dhṛtavrato varuṇaḥ pastyāsv ā | sāmrājyāya sukratuḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नि। स॒सा॒द॒। धृ॒तऽव्र॑तः। वरु॑णः। प॒स्त्या॑सु। आ। साम्ऽरा॑ज्याय। सु॒ऽक्रतुः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:25» मन्त्र:10 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:17» मन्त्र:5 | मण्डल:1» अनुवाक:6» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

जो मनुष्य इस वायु को ठीक-ठीक जानता है, वह किसको प्राप्त होता है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है।

पदार्थान्वयभाषाः - जैसे जो (धृतव्रतः) सत्य नियम पालने (सुक्रतुः) अच्छे-अच्छे कर्म वा उत्तम बुद्धियुक्त (वरुणः) अति श्रेष्ठ सभा सेना का स्वामी (पस्त्यासु) अत्युत्तम घर आदि पदार्थों से युक्त प्रजाओं में (साम्राज्याय) चक्रवर्त्ती राज्य को करने की योग्यता से युक्त मनुष्य (आनिषसाद) अच्छे प्रकार स्थित होता है, वैसे ही हम लोगों को भी होना चाहिये॥१०॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे परमेश्वर सब प्राणियों का उत्तम राजा है, वैसे जो ईश्वर की आज्ञा में वर्त्तमान धार्मिक शरीर और बुद्धि बलयुक्त मनुष्य हैं, वे ही उत्तम राज्य करने योग्य होते हैं॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

य एतं जानाति स किं प्राप्नोतीत्युपदिश्यते

अन्वय:

यथा यो धृतव्रतः सुक्रतुर्वरुणो विद्वान् मनुष्यः पस्त्यासु प्रजासु साम्राज्यायानिषसाद तथाऽस्माभिरपि भवितव्यम्॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (नि) नित्यार्थे (ससाद) तिष्ठति। अत्र लडर्थे लिट्। सदेः परस्य लिटि। (अष्टा०८.३.१०७) अनेन परसकारस्य मूर्द्धन्यादेशनिषेधः। (धृतव्रतः) सत्याचारशीलः (वरुणः) उत्तमो विद्वान् (पस्त्यासु) पस्त्येभ्यो गृहेभ्यो हितास्तासु प्रजासु। पस्त्यमिति गृहनामसु पठितम्। (निघं०३.४) (आ) समन्तात् (साम्राज्याय) यद्राष्ट्रं सर्वत्र भूगोले सम्यक् राजते प्रकाशते तस्य भावाय (सुक्रतुः) शोभनाः क्रतवः कर्माणि प्रज्ञा वा यस्य सः॥१०॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा परमेश्वरः सर्वासां प्रजानां सम्राड् वर्त्तते तथा य ईश्वराज्ञायां वर्त्तमानो विद्वान् धार्मिकः शरीरबुद्धिबलसंयुक्तो मनुष्यो भवति स एव साम्राज्यं कर्तुमर्हतीति॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा परमेश्वर सर्व प्राण्यांचा उत्तम राजा आहे तसे ईश्वराच्या आज्ञेत असणारी धार्मिक, शरीर व बुद्धीने बलयुक्त माणसेच उत्तम राज्य करण्यायोग्य असतात. ॥ १० ॥