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अ॒ग्नेर्व॒यं प्र॑थ॒मस्या॒मृता॑नां॒ मना॑महे॒ चारु॑ दे॒वस्य॒ नाम॑। स नो॑ म॒ह्या अदि॑तये॒ पुन॑र्दात्पि॒तरं॑ च दृ॒शेयं॑ मा॒तरं॑ च॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agner vayam prathamasyāmṛtānām manāmahe cāru devasya nāma | sa no mahyā aditaye punar dāt pitaraṁ ca dṛśeyam mātaraṁ ca ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒ग्नेः। व॒यम्। प्रथ॒मस्य॑। अ॒मृता॑नाम्। मना॑महे। चारु॑। दे॒वस्य॑। नाम॑। सः। नः॑। म॒ह्यै। अदि॑तये। पुनः॑। दा॒त्। पि॒तर॑म्। च॒। दृ॒शेय॑म्। मा॒तर॑म्। च॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:24» मन्त्र:2 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:13» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:6» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

इन प्रश्नों के उत्तर अगले मन्त्र में प्रकाशित किये हैं-

पदार्थान्वयभाषाः - हम लोग जिस (अग्ने) ज्ञानस्वरूप (अमृतानाम्) विनाश धर्मरहित पदार्थ वा मोक्ष।प्राप्त जीवों में (प्रथमस्य) अनादि विस्तृत अद्वितीय स्वरूप (देवस्य) सब जगत् के प्रकाश करने वा संसार में सब पदार्थों के देनेवाले परमेश्वर का (चारु) पवित्र (नाम) गुणों का गान करना (मनामहे) जानते हैं, (सः) वही (नः) हमको (मह्यै) बड़े-बड़े गुणवाली (अदितये) पृथिवी के बीच में (पुनः) फिर जन्म (दात्) देता है, जिससे हम लोग (पुनः) फिर (पितरम्) पिता (च) और (मातरम्) माता (च) और स्त्री-पुत्र-बन्धु आदि को (दृशेयम्) देखते हैं॥२॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! हम लोग जिस अनादिस्वरूप सदा अमर रहने वा जो हम सब लोगों के किये हुए पाप और पुण्यों के अनुसार यथायोग्य सुख-दुःख फल देनेवाले जगदीश्वर देव को निश्चय करते और जिसकी न्याययुक्त व्यवस्था से पुनर्जन्म को प्राप्त होते हैं, तुम लोग भी उसी देव को जानो, किन्तु इससे और कोई उक्त कर्म करनेवाला नहीं है, ऐसा निश्चय हम लोगों को है कि वही मोक्षपदवी को पहुँचे हुए जीवों का भी महाकल्प के अन्त में फिर पाप-पुण्य की तुल्यता से पिता-माता और स्त्री आदि के बीच में मनुष्यजन्म धारण कराता है॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

एतयोः प्रश्नयोरुत्तरे उपदिश्येते।

अन्वय:

वयं यस्याग्नेर्ज्ञानस्वरूपस्यामृतानां प्रथमस्यानादेर्देवस्य चारु नाम मनामहे, स एव नोऽस्मभ्यं मह्या अदितये पुनर्जन्म दात् ददाति, यतश्चाहं पुनः पितरं मातरं च स्त्रीपुत्रबन्ध्वादीनपि दृशेयं पश्येयम्॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्नेः) यस्य ज्ञानस्वरूपस्य (वयम्) विद्वांसः सनातना जीवाः (प्रथमस्य) अनादिस्वरूपस्यैवाद्वितीयस्य परमेश्वरस्य (अमृतानाम्) विनाशधर्मरहितानां जगत्कारणानां वा प्राप्तमोक्षानां जीवानां मध्ये (मनामहे) विजानीयाम् (चारु) पवित्रम् (देवस्य) सर्वजगत्प्रकाशकस्य सृष्टौ सकलपदार्थानां दातुः (नाम) आह्वानम् (सः) जगदीश्वरः (नः) अस्मभ्यम् (मह्यै) महागुणविशिष्टायाम् (अदितये) पृथिव्याम् (पुनः०) इत्यारभ्य निरूपितपूर्वार्थानि पदानि विज्ञेयानि॥२॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! वयं यमनादिममृतं सर्वेषामस्माकं पापपुण्यानुसारेण फलव्यवस्थापकं जगदीश्वरं देवं निश्चिनुमः। यस्य न्यायव्यवस्थया पुनर्जन्मानि प्राप्नुमो यूयमप्येतमेव देवं पुनर्जन्मदातारं विजानीत, न चैतस्मादन्यः कश्चिदर्थ एतत्कर्म कर्तुं शक्नोति। अयमेव मुक्तानामपि जीवानां महाकल्पान्ते पुनः पापपुण्यतुल्यतया पितरि मातरि च मनुष्यजन्म कारयतीति च॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! आम्ही ज्या अनादी स्वरूप सदैव अमर असणाऱ्या व सर्व लोकांनी केलेल्या पापपुण्याप्रमाणे यथायोग्य सुख-दुःख फळ देणाऱ्या जगदीश्वराचा निश्चय करतो. तो न्याययुक्त व्यवस्थेने पुनर्जन्म देतो, त्या देवाला तुम्हीही जाणा. त्याच्याखेरीज कोणीही वरील कर्म करणारा नाही. अशी आमची खात्री आहे. तोच मोक्षाला पोचलेल्या जीवांनाही महाकल्पाच्या शेवटी पुन्हा पाप-पुण्याच्या तुलनेने माता-पिता यांच्या उदरी जन्म देतो. ॥ २ ॥