तेन॑ स॒त्येन॑ जागृत॒मधि॑ प्रचे॒तुने॑ प॒दे। इन्द्रा॑ग्नी॒ शर्म॑ यच्छतम्॥
tena satyena jāgṛtam adhi pracetune pade | indrāgnī śarma yacchatam ||
तेन॑। स॒त्येन॑। जा॒गृ॒त॒म्। अधि॑। प्र॒ऽचे॒तुने॑। प॒दे। इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑। शर्म॑। य॒च्छ॒त॒म्॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर भी वे किस प्रकार के हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तौ कीदृशावित्युपदिश्यते।
याविन्द्राग्नी तेन सत्येन प्रचेतुने पदेऽधिजागृतं तौ शर्म यच्छतं दत्तः॥६॥