ये नाक॒स्याधि॑ रोच॒ने दि॒वि दे॒वास॒ आस॑ते। म॒रुद्भि॑रग्न॒ आ ग॑हि॥
ye nākasyādhi rocane divi devāsa āsate | marudbhir agna ā gahi ||
ये। नाक॑स्य। अधि॑। रो॒च॒ने। दि॒वि। दे॒वासः। आस॑ते। म॒रुत्ऽभिः॑। अ॒ग्ने॒। आ। ग॒हि॒॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर भी उक्त पवन कैसे हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्ते कीदृशा इत्युपदिश्यते।
ये देवासो नाकस्य रोचने दिव्यध्यासते तद्धारकैः प्रकाशकैर्मरुद्भि सहाग्नेऽयमग्निरागहि सुखानि प्रापयति॥६॥