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यत्ते॑ सोम॒ गवा॑शिरो॒ यवा॑शिरो॒ भजा॑महे। वाता॑पे॒ पीव॒ इद्भ॑व ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yat te soma gavāśiro yavāśiro bhajāmahe | vātāpe pīva id bhava ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यत्। ते॒। सो॒म॒। गोऽआ॑शिरः। यव॑ऽआशिरः। भजा॑महे। वाता॑पे। पीवः॑। इत्। भ॒व॒ ॥ १.१८७.९

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:187» मन्त्र:9 | अष्टक:2» अध्याय:5» वर्ग:7» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:24» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सोम) यवादि ओषधि रसव्यापी ईश्वर ! (गवाशिरः) गौ के रस से बनाये वा (यवाशिरः) यवादि ओषधियों के संयोग से बनाये हुए (ते) उस अन्न के (यत्) जिस सेवनीय अंश को हम लोग (भजामहे) सेवते हैं उससे, हे (वातापे) पवन के समान सब पदार्थों में व्यापक परमेश्वर ! (पीवः) उत्तम वृद्धि करनेवाले (इत्) ही (भव) हूजिये ॥ ९ ॥
भावार्थभाषाः - जैसे मनुष्य अन्नादि पदार्थों में उन उन की पाकक्रिया के अनुकूल सब संस्कारों को करते हैं, वैसे रसों को भी रसोचित संस्कारों से सिद्ध करें ॥ ९ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे सोम गवाशिरो यवाशिरस्ते यत्सेव्यमंशं वयं भजामहे। तस्मात् हे वातापे पीव इद्भव ॥ ९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) (ते) तस्य (सोम) यवाद्योषधिरसव्यापिन् ईश्वर (गवाशिरः) गोरससंस्कर्त्ता च (यवाशिरः) यवाद्योषधिसंयोगेन संस्कृतस्य (भजामहे) सेवामहे (वातापे) वातवत्सर्वव्यापिन् (पीवः) प्रवृद्धिकरः (इत्) एव (भव) ॥ ९ ॥
भावार्थभाषाः - यथा जना अन्नादिपदार्थेषु तत्तत्पाकक्रियानुकूलान् सर्वान् संस्कारान कुर्वन्ति तथा रसानपि रसोचितसंस्कारैः संपादयन्तु ॥ ९ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जशी माणसे अन्न इत्यादी पदार्थांवर पाकक्रिया करताना संस्कार करतात तसे रसांनाही रसोचित संस्काराने सिद्ध करावे. ॥ ९ ॥