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सना॒ ता त॑ इन्द्र॒ नव्या॒ आगु॒: सहो॒ नभोऽवि॑रणाय पू॒र्वीः। भि॒नत्पुरो॒ न भिदो॒ अदे॑वीर्न॒नमो॒ वध॒रदे॑वस्य पी॒योः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sanā tā ta indra navyā āguḥ saho nabho viraṇāya pūrvīḥ | bhinat puro na bhido adevīr nanamo vadhar adevasya pīyoḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सना॑। ता। ते॒। इ॒न्द्र॒। नव्याः॑। आ। अ॒गुः॒। सहः॑। नभः॑। अवि॑ऽरणाय। पू॒र्वीः। भि॒नत्। पुरः॑। न। भिदः॑। अदे॑वीः। न॒नमः॑। वधः॑। अदे॑वस्य। पी॒योः ॥ १.१७४.८

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:174» मन्त्र:8 | अष्टक:2» अध्याय:4» वर्ग:17» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:23» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) सूर्य के समान प्रतापवान् राजन् ! आप (अविरणाय) युद्ध की निवृत्ति के लिये (नभः) हिंसक शत्रुजनों को (सहः) सहते हो। आप जैसे (पूर्वीः) प्राचीन (पुरः) शत्रुओं की नगरियों को (भिनत्) छिन्न-भिन्न करते हुए (न) वैसे (भिदः) भिन्न अलग-अलग (अदेवीः) शत्रुवर्गों की दुष्ट नगरियों को (ननमः) नमाते ढहाते हो उससे (अदेवस्य, पीयोः) राक्षसपन संचारते हुए शत्रुगण का (वधः) नाश होता है, यह जो (ते) आपके (सना) प्रसिद्ध शूरपने के काम हैं (ता) उनको (नव्याः) नवीन प्रजाजन (आगुः) प्राप्त होवें ॥ ८ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। राजजन संग्रामादि भूमियों में ऐसे शूरता दिखलानेवाले कामों का आचरण करें, जिनको देखके ही जिन्होंने पिछली शूरता के काम नहीं देखे वे नवीन दुष्ट प्रजाजन भयभीत हों ॥ ८ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे इन्द्र त्वमविरणाय नभः सहो भवान् पूर्वीः पुरो भिनत् न भिदोऽदेवीर्ननमस्तेनादेवस्य पीयोर्वधो भवतीत्येतानि यानि ते सना ता नव्या आगुः ॥ ८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सना) सनानि प्रसिद्धानि शौर्याणि (ता) तानि तेजांसि (ते) तव (इन्द्र) सवितृवद्वर्त्तमान (नव्याः) नवा जनाइव (आ) (अगुः) आगच्छेयुः (सहः) सहसे। लङि मध्यमैकवचनेऽडभावः। (नभः) हिंसकान् (अविरणाय) युद्धनिवृत्तये (पूर्वीः) प्राचीनाः (भिनत्) अभिनत्। अत्राऽडभावः। (पुरः) शत्रूणां नगरीः (न) इव (भिदः) भिन्नाः (अदेवीः) असुरस्य दुष्टस्य नगरीः (ननमः) नमयति। अत्रान्तर्भावितो ण्यर्थः। नम धातोर्लेटि मध्यमैकवचने शपः श्लुः, श्लाविति द्विर्वचनम्। (वधः) नाशः (अदेवस्य) असुरस्य शत्रुगणस्य (पीयोः) स्थूलस्य। अत्र पीव धातोर्बाहुलकादौणादिको युक् प्रत्ययः ॥ ८ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। राजानः संग्रामादिष्वीदृशानि शूरताप्रदर्शकानि कर्माण्याचरेयुर्यानि दृष्ट्वैवादृष्टपूर्वकर्माणो नवीना दुष्टाः प्रजाजना बिभ्येयुः ॥ ८ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. राजाने युद्धभूमीवर असा अभूतपूर्व पराक्रम दाखवावा की जे पाहून असा पराक्रम मागे कधी पाहिला नाही असे वाटून दुष्ट नवीन प्रजाजन भयभीत व्हावेत. ॥ ८ ॥