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इन्द्रा॑वरुण वाम॒हं हु॒वे चि॒त्राय॒ राध॑से। अ॒स्मान्त्सु जि॒ग्युष॑स्कृतम्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

indrāvaruṇa vām ahaṁ huve citrāya rādhase | asmān su jigyuṣas kṛtam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इन्द्रा॑वरुणा। वा॒म्। अ॒हम्। हु॒वे। चि॒त्राय॑। राध॑से। अ॒स्मान्। सु। जि॒ग्युषः॑। कृ॒त॒म्॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:17» मन्त्र:7 | अष्टक:1» अध्याय:1» वर्ग:33» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:4» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

कैसे धन के लिये उपाय करना चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - जो (इन्द्रावरुणा) पूर्वोक्त इन्द्र और वरुण अच्छी प्रकार क्रिया कुशलता में प्रयोग किये हुए (अस्मान्) हम लोगों को (सुजिग्युषः) उत्तम विजययुक्त (कृतम्) करते हैं, (वाम्) उन इन्द्र और वरुण को (चित्राय) जो कि आश्चर्य्यरूप राज्य, सेना, नौकर, पुत्र, मित्र, सोना, रत्न, हाथी, घोड़े आदि पदार्थों से भरा हुआ (राधसे) जिससे उत्तम-उत्तम सुखों को सिद्ध करते हैं, उस सुख के लिये (अहम्) मैं मनुष्य (हुवे) ग्रहण करता हूँ॥७॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य अच्छी प्रकार साधन किये हुए मित्र और वरुण को कामों में युक्त करते हैं, वे नाना प्रकार के धन आदि पदार्थ वा विजय आदि सुखों को प्राप्त होकर आप सुखसंयुक्त होते तथा औरों को भी सुखसंयुक्त करते हैं॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

कीदृशाय धनायेत्युपदिश्यते।

अन्वय:

यौ सम्यक् प्रयुक्तावस्मान् सुजिग्युषः कृतं कुरुतो वा ताविन्द्रावरुणौ चित्राय राधसेऽहं हुव आददे॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रावरुणा) पूर्वोक्तौ। अत्र सुपां सुलुग्० इत्याकारादेशो वर्णव्यत्ययेन ह्रस्वश्च। (वाम्) तौ। अत्र व्यत्ययः। (अहम्) (हुवे) आददे। अत्र व्यत्ययेनात्मनेपदं बहुलं छन्दसि इति शपो लुक् लडुत्तमस्यैकवचने रूपम्। (चित्राय) अद्भुताय राज्यसेनाभृत्यपुत्रमित्रसुवर्णरत्नहस्त्यश्वादियुक्ताय (राधसे) राध्नुवन्ति संसेधयन्ति सुखानि येन तस्मै धनाय। राध इति धननामसु पठितम्। (निघं०२.१०) (अस्मान्) धार्मिकान् मनुष्यान् (सु) सुष्ठु (जिग्युषः) विजययुक्तान् (कृतम्) कुरुतः। अत्र लडर्थे लोट्, मध्यमस्य द्विवचने बहुलं छन्दसि इति शपो लुक् च॥७॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्याः सुसाधिताविन्द्रावरुणौ कार्य्येषु योजयन्ति, ते विविधानि धनानि विजयं च प्राप्य सुखिनः सन्तः सर्वान् प्राणिनः सुखयन्ति॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे चांगल्या प्रकारचे साधन असलेल्या मित्र (विद्युत, सूर्य वगैरे) व वरुण (जल, वायू, चंद्र वगैरे) यांना कामात युक्त करतात ते विविध प्रकारचे धन इत्यादी पदार्थ प्राप्त करून विजय मिळवून सुखी होतात तसेच इतरांनाही सुखी करतात. ॥ ७ ॥