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तयो॒रिदव॑सा व॒यं स॒नेम॒ नि च॑ धीमहि। स्यादु॒त प्र॒रेच॑नम्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tayor id avasā vayaṁ sanema ni ca dhīmahi | syād uta prarecanam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तयोः॑। इत्। अव॑सा। व॒यम्। स॒नेम॑। नि। च॒। धी॒म॒हि॒। स्यात्। उ॒त। प्र॒ऽरेच॑नम्॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:17» मन्त्र:6 | अष्टक:1» अध्याय:1» वर्ग:33» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:4» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उन दोनों से मनुष्यों को क्या-क्या करना चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - हम लोग जिन इन्द्र और वरुण के (अवसा) गुणज्ञान वा उनके उपकार करने से (इत्) ही जिन सुख और उत्तम धनों को (सनेम) सेवन करें (तयोः) उनके निमित्त से (च) और उनसे पाये हुए असंख्यात धन को (निधीमहि) स्थापित करें अर्थात् कोश आदि उत्तम स्थानों में भरें, और जिन धनों से हमारा (प्रचेरनम्) अच्छी प्रकार अत्यन्त खरच (उत) भी (स्यात्) सिद्ध हो॥६॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को उचित है कि अग्नि आदि पदार्थों के उपयोग से भरपूर धन को सम्पादन और उसकी रक्षा वा उन्नति करके यथायोग्य खर्च करने से विद्या और राज्य की वृद्धि से सबके हित की उन्नति करनी चाहिये॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्ताभ्यां मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्युपदिश्यते।

अन्वय:

वयं ययोर्गुणानामवसैव यानि सुखानि धनानि च सनेम तयोः सकाशात्तानि पुष्कलानि धनानि च निधीमहि तैः कोशान् प्रपूरयेम येभ्योऽस्माकं प्ररेचनमुत स्यात्॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तयोः) इन्द्रावरुणयोर्गुणानाम् (इत्) एव (अवसा) विज्ञानेन तदुपकारकरणेन वा (वयम्) विद्वांसो मनुष्याः (सनेम) सुखानि भजेम (नि) नितरां क्रियायोगे (च) समुच्चये (धीमहि) तां धारयेमहि। अत्र बहुलं छन्दसि इति शपो लुक्। (स्यात्) भवेत् (उत) उत्प्रेक्षायाम् (प्ररेचनम्) प्रकृष्टतया रेचनं पुष्कलं व्ययार्थम्॥६॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैरग्न्यादिपदार्थानामुपयोगेन पूर्णानि धनानि सम्पाद्य रक्षित्वा वर्द्धित्वा च तेषां यथायोग्येन व्ययेन राज्यवृद्ध्या सर्वहितमुन्नेयम्॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी अग्नी इत्यादी पदार्थांच्या उपयोगाने पूर्ण धन प्राप्त करून त्याचे रक्षण व वाढ करून यथायोग्य खर्च केल्यास विद्या व राज्य यांची वृद्धी होऊन सर्वांचे हित होते. ॥ ६ ॥